सोमवार 23 जनवरी 2023 को 09:06 PM पर
देश की संवैधानिक संस्थाओं को खोखला करने का आरोप
भाकपा (माले) लिबरेशन की ओर से यहां दैनिक देश सेवक के परिसर में बने हुए बाबा सोहन सिंह भकना भवन में 'फाशीवाद: विश्व का अनुभव और इसकी भारतीय विशेषताएं' विषय पर एक विशेष सेमिनार का आयोजन किया गया। संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव कामरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने संबोधित किया। सेमिनार की अध्यक्षता कामरेड परषोत्तम शर्मा, सुखदर्शन सिंह नत्त, रुलदू सिंह मनसा, भगवंत सिंह समाओ और सेंट्रल ट्रेड यूनियन एक्टू के नेता सतीश कुमार ने की। कार्यक्रम का संचालन पार्टी की चंडीगढ़ इकाई के सचिव कामरेड कंवलजीत ने किया।
कामरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने अपने भाषण में कहा कि जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, संविधान, लोकतंत्र, राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र और संघीय ढांचे को लगातार कमजोर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 2024 का संसदीय चुनाव देश और देशवासियों के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए भाजपा को हराना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियां विपक्ष की भूमिका में हैं, सभी को अपने-अपने राज्यों में बीजेपी के खिलाफ मजबूती से लड़ना चाहिए। विपक्षी दलों की एकजुटता के लिए हर राज्य में एक अलग फॉर्मूला हो सकता है। उन्होंने कहा कि देश स्तर पर भाजपा के खिलाफ व्यापक एकता बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। तमिलनाडु, पंजाब, केरल और बंगाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में राज्यपाल खुले तौर पर केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। राज्यपालों के ये कृत्य संघीय ढांचे की अवधारणा और राज्यों के अधिकारों का घोर उल्लंघन हैं, इसलिए देश की एकता को भंग करने वाले ऐसे असंवैधानिक कृत्यों को तुरंत रोका जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार तानाशाह से ज्यादा फाशीवादी शासन की तरह काम कर रही है, जिससे वह सभी संवैधानिक संस्थाओं के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है। आम जनता रोजगार, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए वोट देती है, लेकिन संघ-भाजपा इसके बजाय अपने कॉर्पोरेट-उन्मुख सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं। आज साम्प्रदायिक ज़हर उगलने वाले, हत्यारे, दंगाई और खरबों के सरकारी धन का गबन करने वाले भ्रष्टाचारी खुले घूम रहे हैं, लेकिन दलितों, मजदूरों, युवाओं, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले और संघर्ष करने वाले सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को झूठ का शिकार बनाया जा रहा है। बहुत से मामलों में जनता की आवाज़ उठाने वालों को झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है और झूठी पुलिस मुठभेड़ों में मौत के घात उतरा जा रहा है। ऐसे जन हितैषी लोगों को उनकी सज़ाएं पूरी होने के बाद भी जेलों से रिहा नहीं किया जा रहा।
मीडिया से बात करते हुए राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर राहुल के दौरे से कांग्रेस में कुछ गति आती है तो यह अच्छी बात होगी। उन्होंने कहा कि कम से कम फाशीवाद का मुकाबला करने के लिए आम सहमति के आधार पर देश में एक व्यापक मोर्चा विकसित करने की मुख्य जिम्मेदारी वाम दलों की है। उन्होंने कहा कि पटना में 15 से 20 फरवरी तक होने वाले भाकपा माले के 11वें आम सम्मेलन में मोदी सरकार के खिलाफ व्यापक सामाजिक-राजनीतिक गोलबंदी पर गंभीरता से चर्चा की जाएगी।
स्वयं अधिक से अधिक अध्ययन करना और दूसरों को भी इसके रूबरू कराना सुखदर्शन नत्त के स्वभाव में शामिल है। युवावस्था वाली मौज-मस्ती के दौर में भी वह इस विचारधारा से गंभीरता से जुड़े रहे। वह अभी भी लोगों के कल्याण के बारे में सोचते हैं। सभी मतभेदों से ऊपर उठकर इस आंदोलन को मजबूत करना भी उनकी प्राथमिक चिंताओं में से एक है। उनकी पत्नी जसबीर कौर नत्त भी उनका पूरा समर्थन करती हैं और पार्टी में भी पूरी तरह सक्रिय हैं।
सेमिनार के इस अवसर पर सर्वाधिक आलोचनात्मक और विवादास्पद मामलों पर अपनी टिप्पणी देने वाले प्रख्यात विचारक डॉ. प्यारे लाल गर्ग भी उपस्थित थे। स्वयं पार्टी के पदाधिकारी व अन्य प्रबंधक अभी तक बाबा सोहन सिंह भकना हॉल के बाहर भी नहीं पहुंचे थे, लेकिन डॉ. प्यारे लाल गर्ग पूरे अनुशासन के साथ निश्चित समय पर पहुंचे थे हुए थे। भकना भवन के बाहरी प्रांगण में डॉ. गर्ग बहुत ही विनम्रता और सादगी से प्रांगण के फुटपाथ जैसी सीढ़ी पर बैठे नज़र ऐ। उन्हें देख कर आशंका हुई की इतना बड़ा व्यक्ति इस तरह ज़मीन पर कैसे बैठ सकता है। आशंका दूर करने के लिए उन्हें फोन लगाया तो वह डॉ. प्यारे लाल गर्ग ही निकले।
कार्यक्रम शुरू होने से पहले, उनके शब्दों ने जीवन के गहरे रहस्यों के बारे में बहुत कुछ सिखाया और समझाया। घर-परिवार से लेकर समाज तक उनकी पारदर्शी सोच और बेबाकी देखकर दिल चाहने लगता है कि ज़िन्दगी में बस उनके जैसा बना जाए। उन्होंने बातों बातों में बताया कि पीजीआई में उनक रूटीन कैसा रहता था। इसके साथ ही घर परिवार के मामले में वह कितना सीधे और स्पष्ट थे।उन्होंने अपने बच्चों को कैसे जीवन की असली शिक्षा दी इस सब üपर कभी अलग से पोस्ट लिखनी है। सही बात यही है कि ऐसी बातें किताबों में नहीं मिलतीं। इस तरह की अनमोल बातों का पता डॉ. गर्ग जैसे दरवेशों के साथ बैठने से ही लगता है।
इस बीच जब सेमिनार शुरू हुआ तो डॉ. प्यारे लाल गर्ग ने प्रत्येक वक्ता को बड़े ध्यान से सुना। यहां तक कि आदि से अंत तक सबसे पीछे बैठे हुए उन्होंने हर वक्ता के दिल की आवाज भी सुनी थी जो उनकी जुबां तक नहीं आई थी।शैड उन्हें सभी के दिल का एक्सरे अपनी एक निगाह से ही करना अत है। जब मंच के लोगों ने उनसे अनुरोध किया तो उन्होंने मंच पर पहुंचकरभी अपने विचार रखे। उन्होंने संगोष्ठी के मंच से भी बड़ी विनम्रता से अपने विचार रखे। इस छोटे से भाषण की शुरुआत भी बेहद सादगी भरी थी और अंत में माइक को वापिस रखने की रस्म भी। एक बार फिर बाहर का दृश्य यद्बा आ गया जब थोड़ी ही देर पहले पार्क में चबूतरे पर बैठे रुल्दा सिंह मनसा की तेज़ आवाज फिर से कानों में गूंजने लगी जो उन्होंने डॉ. गर्ग को देखकर कही थी- कि आपको टेलीविज़न पर तो हम रोज़ ही देखते हैं लेकिन आज आमने सामने भी खुले दर्शन कर लिए। डॉ.गर्ग का अद्वितीय व्यक्तित्व अनजान और नए लोगों को भी पलों क्षणों में ही अपना बना लेता है।
अब चर्चा वहां पहुंचे कुछ और खास मेहमानों की भी। पत्रकार आमतौर पर केवल अपने निर्धारित समय पर कार्यालय पहुंचने, समाचार बनाने, संपादन करने, लेख लिखने और नियुक्तियों की पुष्टि करने, घर लौटने तक ही सीमित रहते हैं, उनके पास किसी अन्य काम के लिए समय बचता भी नहीं है, न ही संपादकीय डेस्क से उठने के बाद ऊर्जा बाकी। तन मन सब खाली जैसा हो जाता है। बस थकावट जो कहती है जल्दी से जा कर सो जाओ। ऐसा लगता है कि अंदर की सभी शक्तियों का किसी ने हरण लिया है। समाज के चौथे स्तंभ मीडिया में काम करने वाले अधिकांश लोग समाचार पत्रों के कर्तव्यों को पूरा करते करते बहुत जल्द इस दुनिया से चले जाते हैं। जब तक ज़िंदगी रहती है तब तक वे आम जनता से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने में व्यस्त रहते हैं। ऐसे लोग अपने संस्थान से रिटायर हो कर भी कभी रिटायर नहीं होते। अनुभवी पत्रकार हमीर सिंह भी इसी तरह की सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं । वह अक्सर नाज़ुक मुद्दों पर अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं । इस अवसर पर हमीर सिंह के साथी सहयोगी और करीबी मित्र भी कभी-कभी उनकी आलोचना करते हैं लेकिन इसने हमीर सिंह की बात, अंदाज़ या विचार ओके कभी प्रभावित नहीं किया। वह अपना बदलते और नहीं। उन्हें देख कर याद आ रहा था एक दोहा:
कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर! ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर!
तो ऐसी ही शख्सियत वाले पत्रकार हमीर सिंह भी इस संगोष्ठी में पहुंचे हुए थे। वह भी डॉ. गर्ग के साथ सबसे पीछे वाली पंक्ति की कुर्सियों पर बैठे थे। उनके साथ जानेमाने स्तंभकार//कालम नवीस और टीवी पत्रकारिता जगत के मौजूदा सितारे एसपी सिंह भी थे लेकिन आयोजकों के आग्रह करने पर भी एस पी सिंह मंच पर नहीं आए, हालांकि, उनकी उपस्थिति इस संगोष्ठी के कवरेज को महत्व दे रही थी।
इस गोष्ठी में भी वामपंथी दलों की एकता और मजबूती पर काफी जोर दिया गया था। अब देखना होगा कि अगले महीने पटना साहिब (बिहार) में होने वाली पार्टी की ग्यारहवीं कांग्रेस में पार्टी नेतृत्व क्या क्या नए फैसले लेता है? यह बैठक 15 से 20 फरवरी तक पटना साहिब के गांधी मैदान में होनी है. उल्लेखनीय है कि पार्टी का दसवां कांग्रेस मनसा में आयोजित किया गया था।
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