Tuesday, June 23, 2020

कामरेड जीता कौर के अधूरे काम पूरा करना ही होगी सच्ची श्रद्धांजलि

उसी तरह की और वीरांगनाएं भी ढूंढ़नी होंगीं 
लुधियाना: 23 जून 2020:(न्यूज़ मेकर//नक्सलबाड़ी स्क्रीन)::
ज़िंदगी यूं भी गुज़र सकती थी। बहुत ही पारम्परिक तरीके से। बालपन, लडकपन, इश्क विश्क, शादी ब्याह, बाल बच्चे और एक दिन शव यात्रा लेकिन जीता कौर को यह सब मंजूर नहीं था। उसके अंदर की आंख  वह सब भी देखने लगी जो आम लोगों को नजर न आता। बहुत से सवाल उसके मन में उठने लगे जो उसे चैन न लेने देते। इन सवालों का जवाब उसे न घर से मिलता, न ही स्कूल कालेज से और न ही समाज से। एक दिन उसके कालेज में एक सम्भ्रांत युवा महिला किसी बैठक विशेष का निमन्त्रण देने आई। उस बैठक और निमन्त्रण की जान पहचान उस युवा महिला ने बहु ही आकर्षक ढंग से कराई। वह युवा महिला पेशे से वकील थी। बहुत ही ध्यान से हर शब्द सुनती और बहुत ही सटीक जवाब देती। ऐसा जवाब जो हर धुंध और धुएं को तेज़ी से हटाता जा रहा था। जीता कौर को लगा कि इस बैठक में उसे अपने सवालों के जवाब ज़रूर मिलेंगे। इसी उम्मीद से बोली क्या मैं भी आ सकती हूं इस बैठक में? जवाब में मुस्कान भरी स्वीकृति मिली। यह बैठक थी जागृती महिला परिषद की और इस बैठक का निमन्त्रण लाने वाली युवा महिला थी सविता तिवाड़ी। यह संगठ सबंधित था लेकिन वास्तव में भाकपा(माले) लिबरेशन से जुड़ा हुआ था। न यूं तो इंडियन पीपुल्स फ्रंट 
इस बैठक में आए ही जीता कौर इसी संगठन से जुड़ गई। उसने अपने छोटे से जीवन के आरम्भिक दौर में ही देखा था कि किस तरह कांग्रेस से सबंधित कुछ नेताओं ने उसके पिता को सड़क हादसे में मरवाने की साज़िश रची। पिता रत्न सिंह बच तो गए लेकिन बहुत सी शरीरक समस्याएं पैदा हो गयीं। ज़िंदगी के इस दौर में जब बहुत से लोग मस्ती में मस्त रहे हैं तब जीता कौर देश की सियस और समाज के वास्तविक रंगों को न सिर्फ देख रही थी बल्कि अनुभव भी कर रही थी। उसके मन में उठते सवाल बढ़ते जा रहे थे। फिर प्रेम हुआ तो वह सपना भी साकार न हुआ। समाज ने इसकी स्वीकृति न दी। प्रेमी अपने परिवार से बात करने की हिम्मत तक न जुटा पाया। प्यार का यह सपना दिखा और बस दिखते ही टूट गया। इसके बाद जीता कौर ने किसी भी सा सांसारिक प्रेम का सपना न देखा। बस दिन रात एक ही धुन कि इस समाज को बदलना है। इस बदलाहट के लिए दिन रात काम करना है। निरंतर काम ही काम। उसे कैंसर हो गया लेकिन फिर भी आराम न किया। देहांत से कुछ ही दिन/सप्ताह पहले मानसा के कामरेड हरभगवान भीखी ने जीता कौर से एक औपचारिक मुलाकात की। मीडिआ के लिए कुछ सवाल पूछे। किसी को ऐसी आशंका तक न थी कि वह इतनी जल्दी हमसे बिछड़ जाएगी। हरभगवान भीखी की मुलाकात को आप पढ़ सकते हैं नक्सलबाड़ी (पंजाबी) में। अगर आपके पास उससे जुडी कोई याद हो तो वह भी हमें भेज सकते हैं। जिन लोगों ने समाज को बदलने के लिए अपना सारा जीवन दांव पर लगा दिया, हर सुख त्याग दिया उनकी ादों को संजोना और संभालना हम सभी का नैतिक कर्तव्य बनता है। हो सकता है आप जीता कौर के संगठन ा विचारों से सहमत न हों लेकिन ह तो आपको भी मानना ही लड़ेगा कि उसने अपनी ज़िंदगी समाज को बेहतर बनाने के मकसद को सामने रख कर लगाई। जीता कौर जैसी युवाओं को ढूंढ़ने में आज के पारम्परिक वाम दल बहुत कमज़ोर हैं। वे कुछ नहीं कर पा रहे। समाज में बदलाव चाहने वाले हर व्यक्ति को आगे आना होगा। खुद जागना होगा दूसरों को भी जगाना होगा। हमारे वक़्तों की वीरांगना कामरेड जीता कौर की चर्चा नक्सलबाड़ी स्क्रीन अंग्रेजी में भी है। आपके पास ऐसी कोई भी जानकारी हो तो हमें अवश्य भेजें। उन लोगों के विवरण संभालना हम सभी का कर्तव्य है जिन्होंने समाज को बदलने के लिए अपनी हर सांस तक लगा दी। कामरेड जीता कौर के संबंध में विवरण और तस्वीरें हमें भेजी कामरेड हरभगवान भीखी ने।  हम उनके आभारी हैं। --न्यूज़ मेकर  

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