Thursday, November 25, 2021

बटुकेश्वर दत्त और सावरकर का नाम एक साथ नहीं होगा

भाजपा और संघ के खिलाफ भाकपा माले खुल कर आई मैदान में 


पटना: 25 नवंबर 2021: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन डेस्क)::

इतिहास में मिलावट अक्सर होती रही है। इसे चुपचाप देखने वालों की संख्या भी काफी रही है। जो बोले वो भी कोई ज़्यादा नहीं थे। इस बार इतिहास को सुरक्षित बचाए रखने के लिए जो लोग आगे आए हैं उनमें भाकपा (माले) लिबरेशन भी अग्रणी पंक्ति  में शामिल है। पार्टी ने कहा है कि बटुकेश्वर दत्त और सावरकर का नाम एक साथ नहीं लिया जा सकता। हम इसका विरोध करते हैं और करते रहेंगे। इस मकसद के लिए बटुकेश्वर दत्त की बेटी भारती बागची भी पार्टी के साथ आई है। भारतीय जनता पार्टी ने आजादी के 75 साल पूरा होने पर अमृत महोत्सव मनाने का जो सिलसिला शुरू किया है उसका विरोध करने के लिए आगे आई है भाकपा माले। भाकपा माले का कहना है की भाजपा और आर एस एस इतिहास को बदलने की कुचेष्टाएं कर रहे हैं। आज़ादी के अमृत महोत्स्व की हकीकत यह है  की कंगना रनौत सरेआम आज़ाद का मज़ाक उड़ा रही है।  भाकपा माले का स्पष्ट शब्दों में मानना है कि भाजपा भारत के इतिहास को बदल देना चाहती है लेकिन हम ज़ह सब नहीं होने देंगें।  अभिनेत्री कंगना रनोट के बयान को भाजपा की उसी सोच से जोड़ कर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि 1947 में भारत को भीख मिली थी और असली आजादी 2014 में मिली। इस ब्यान से असलियत को देखना मुश्किल नहीं रह जाता। 

भाकपा (माले) ने तय किया है कि वह दो साल तक जन अभियान चलाएगी और आजादी का सच लोगों को बताएगी। 

बटुकेश्वर दत्त के जन्म दिन पर भाकपा (माले) द्वारा 'आजादी के 75 साल-जनअभियान' की शुरूआत भी की गई है। 

शहीद भगत सिंह के क्रन्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के जन्म दिन पर आजादी के 75 साल: जनअभियान की शुरूआत। वही बी के दत्त जिन्होंने आज़ादी के बाद भी केवल देश के लिए सोचा। 

इस जन अभियान के संबंध में बनाए कार्यक्रम के मुताबिक पार्टी ने बताया कि प्रख्यात इतिहासकार प्रो. ओपी जायसवाल की अध्यक्षता में चलेगा जनअभियान। 

पार्टी ने सख्त स्टैंड लेते हुए अपना संकल्प दोहराया कि खून-पसीने से निर्मित आजादी के आंदोलन के इतिहास को हड़पने व विकृत नहीं करने देंगे।  इस आशय की बात दीपंकर भट्टाचार्य ने स्पष्ट शब्दों में कही। 

भगत सिंह के साथी महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के जन्म दिन पर आज पटना के भारतीय नृत्य कला मंदिर में  इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों व नागरिक समुदाय के आह्वान पर दो सालों तक चलने वाले आजादी के 75 साल: जन अभियान की शुरूआत हुई. इसके पूर्व आज सुबह में जक्कनपुर स्थित बटुकेश्वर दत्त लेन में एक सभा भी आयोजित की गई और विधानसभा मुख्य द्वार पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। 

आजादी के 75 सालों का लेखाजोखा भी पार्टी ने संक्षेप में बताया। पार्टी ने कहा सपने और चुनौतियां विषय पर आयोजित जनकन्वेंशन में मुख्य रूप से प्रख्यात इतिहासकार प्रो. ओपी जायसवाल, माले के महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य, जाने-माने कवि अरूण कमल, पटना विवि के इतिहास विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. भारती एस. कुमार, एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर विद्यार्थी विकास, पसमांदा महाज के नेता व पूर्व सांसद अली अनवर आदि वक्ताओं ने अपने विचार रखे. इस मौके पर एनआईटी के पूर्व शिक्षक प्रो. संतोष कुमार शिक्षाविद् गालिब, रंजीव, इंजीनियर पीएस महाराज, डाॅ. पीएनपीपाल, इप्टा के तनवीर अख्तर, माले के राज्य सचिव कुणाल, धीरेन्द्र झा, महबूब आलम, संतोष सहर, मीना तिवारी, संदीप सौरभ सहित कई लोग उपस्थित थे. मंच का संचालन कुमार परवेज ने किया. हिरावल के साथियों के अजीमुल्ला खां रचित ‘हम हैं इसके मालिक हिंदोस्ता हमारा’ गायन से जनकन्वेंशन की शुरूआत हुई। 

इस आयोजन की चर्चा करते हुए कहा,"आज महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का जन्म दिवस है।  इस पावन अवसर पर मेरी, उनकी इकलौती बेटी, की ओर से आप सभी को, जो बटुकेश्वर दत्त और शहीद—ए—आजम भगत सिंह की धर्मनिरपेक्षता एवं गरीबों के उत्थान की सच्ची भावना से प्रेरित भाईचारा व बराबरी की विचारधारा पर चलने की प्रेरणा लेते हैं, को शुभकामनायें देती हूं। 

इंकलाब जिन्दाबाद! 

शारीरिक अक्षमता के कारण मैं यह संदेश 'वायस मैसेज' से देने में असमर्थ हूं जिसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं।  

मेरे पिता क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के जन्मदिवस पर हो रहे आयोजन की सफलता की कामना करती हूं। 

बटुकेश्वर दत्त की बेटी भारती बागची का संदेश

इस मौके पर ओपी जायसवाल ने कहा कि भाजपा व संघ का आजादी के आंदोलन में विश्वासघात का इतिहास रहा है. वे संविधान के भी विरोधी हैं, क्योंकि यह धारा मानती है कि मनुस्मृति ही संविधान है. जब संविधान लागू हो रहा था और सबको वोट का अधिकार मिल रहा था, तब संघ के नेताओं ने उसका विरोध किया था. ये लोग आज इतिहास को विकृत कर रहे हैं. इसके खिलाफ एक व्यापक एकता बनाना और आजादी के 75 साल की मूल भावना को याद करना व उस संघर्ष को आगे बढ़ाना हम सबका दायित्व बनता है। 

कन्वेंशन में माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बटुकेश्वर दत्त व सावरकर का नाम एक साथ नहीं लिया जा सकता. अंडमान की जेल में सावरकर का इतिहास माफी मांगने का है, जबकि बटुकेश्वर दत्त अनवरत जेल में लड़ते रहे. यह लड़ाई भाजपा के हर झूठ व इतिहास को लेकर उनके खेल के खिलाफ है. आजादी के आंदोलन के इतिहास से ऊर्जा लेकर हम आज की लड़ाई लड़ रहे हैं. हम 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन, 1942 की क्रांति, देश में चले किसान आंदोलन, आजादी आंदोलन में मुस्लिमों की भागीदारी, दलितों-पिछड़ों, महिलाओं की भागीदारी आदि पहलूओं को हम याद कर रहे हैं। 

हमारे पूर्वजों ने लड़कर के अंग्रेजों को भगाया. उनके खून-पसीने से आजादी के आंदोलन के इतिहास का निर्माण हुआ है. यदि अगर संघर्ष नहीं हुआ होता तो इतिहास नहीं बनता. यह हमारी विरासत है, इसका रखरखाव, सबक लेना, कोई गलती हुई तो नहीं दुहराना, यह हम सबको करना है. इस इतिहास को हम संभालेंगे. भाजपा व संघ सत्ता के बल पर उस इतिहास को तोड़-मरोड़ देना चाहते हैं. इसलिए हमें आजादी के मूल्यों को बचाना भी है और ऐसी ताकतों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष में भी उतरना है। 

अरूण कमल ने कहा कि भगत सिंह व उनके साथियों का संघर्ष,  नौसैनिक विद्रोह आदि हमारे आजादी के आंदोलन के मूल्यवान पहलू हैं .आज उस आाजदी को बचाने और उन्हें याद करने की जरूरत है. आजादी की लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी. वह सांस की तरह है. हम सब मिकर चलेंगे और एक नया समाज बनायेंगे। 

विद्यार्थी विकास ने गांधी की जिंदगी बचाने वाले बत्तख मियां के कार्यों पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि भाजपा-संघ के लोग गांधी को मारने वाले गोडसे की भक्ति करते हैं, हमारी विरासत बत्तख मियां की विरासत है, जिन्होंने गांधी को बचाया था. भारती एस कुमार ने कहा कि यह जनअभियान सच्चे इतिहास को लोगों के बीच ले जाने व समझने का एक बेहतर प्रयास है. मौजूदा सरकार उसे तोड़-मरोड़ रही है. इतिहास को तथ्यों पर आधारित होना चाहिए और इसके लिए हमें लड़ना होगा। 

अली अनवर ने आजादी के आंदोलन में हाशिये पर पड़े लोगों के इतिहास को सामने लाने के लिए अभियान की सराहना की. कहा कि संघ के लोग देश की जनता को जहर पिलाने का काम कर रहे हैं. प्रज्ञा सिंह ठाकुर व कंगना रनौत जैसे लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिनके लिए आजादी एक भीख है. यह तमाम शहीदों का अपमान है। 

अंत में जनकन्वेंशन से कुछेक प्रस्ताव लिए गए. प्रो. ओपी जायसवाल की अध्यक्षता में अगले दो सालों तक इस जन अभियान को संचालित करने का निर्णय लिया गया. साथ ही, पटना में बटुकेश्वर दत्त के सम्मान में पटना स्थित सचिवालय हाॅल्ट रेलवे स्टेशन, मीठापुर-गर्दनीबाग रोड और गर्दनीबाग स्थित अंग्रेजों के जमाने के गेट पब्लिक लाइब्रेरी का नाम बटुकेश्वर दत्त के नाम पर किए जाने की मांग की गई. जनभागीदारी से गोरिया मठ के पास बटुकेश्वर दत्त द्वार का निर्माण करने का भी संकल्प लिया गया। 

प्रस्ताव में 1857, 1942, किसान आंदोलन, आदिवासी आंदोलन आदि के अनछुए पहलूओं का दस्तावेजीकरण का निर्णय किया गया और जिलों में कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय किया गया. कन्वेंशन ने अभिनेत्री कंगना रनौत से अविलंब पद्म श्री का पुरस्कार वापस लेने की भी मांग की। इस तरह बहुत सी यधारी बातों के बाद कार्यक्रम संपन्न हुआ। 

Friday, November 19, 2021

जनांदोलन अहंकारी और निरंकुश सत्ताओं को भी हरा सकते है

भाकपा(माले) के नेता दीपंकर भट्टाचार्य ने दी किसानों को बधाई 


नई दिल्ली
: 19 नवंबर 2021: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::

भाकपा माले ने कृषि कानूनों की वापसी को आंदोलन की जीत बताया है। पार्टी के महासचिव दिपांकर  भट्टाचार्य ने इस मकसद का बयान भी जारी किया है। इस संबंध में उन्होंने अपने अकाउंट से और साथ ही पार्टी के अकाउंट  से ट्वीट भी जारी किए। इस अवसर पर भाकपा मेल ने तेज़ी से प्रतिक्रिया व्यक्त की। 

प्रधानमंत्री की तरफ से इन कृषि कानूनों की वापसी पर कामरेड  भट्टाचार्य ने बधाई भी दी। कृषि क़ानूनों के बाद अन्य दमनकारी व विभेदकारी क़ानूनों की वापसी तथा लेबर कोड व परिसंपत्तियों की बिक्री जैसे कॉरपोरेट परस्त कदमों को निरस्त  करवाने के लिए कदम बढ़ाए जाएँ मोदी सरकार द्वारा थोपे गए काले कृषि क़ानूनों की वापसी के लिए साल भर चले किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष की जीत पर भाकपा (माले) किसानों को गर्मजोशी भरी बधाई देती है. इस जीत का स्पष्ट संदेश है कि जनांदोलनों की ताकत से बेहद अहंकारी और निरंकुश सत्ताओं को भी शिकस्त दी जा सकती है।  इसके साथ ही पार्टी ने अब अन्य मांगों को भी उठाना शुरू कर दिया है। इनमें सीएएए को हटवाना भी शामिल है। 

कृषि वापसी पर प्रधानमंत्री के इस ऐलान के ढंग भी पार्टी ने तीखी आलोचना की और इसे गरिमाविहीन बताया। पार्टी महासचिव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद गरिमाहीन तरीके से कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा की। उन्होंने “राष्ट्र” से कृषि क़ानूनों को वापस लेने के लिए माफी मांगी. पर उन्होंने किसानों को देशद्रोही कहने और उन पर दमन ढाहने के लिए माफी नहीं मांगी। पिछले एक साल में भाजपा प्रायोजित पुलिस दमन और दिल्ली के बार्डरों की कठोर परिस्थितियों के चलते 700 से अधिक किसान प्राण गंवा बैठे। इस बात को ंतो इतिहास  प्रदर्षनकारी किसान। 

अपने आंदोलन और एकता के बल पर किसान कृषि क़ानूनों को पीछे धकेलने में कामयाब हो गए हैं। इसके साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी), किसान नेताओं पर दर्ज झूठे मुकदमों की वापसी और आंदोलनकारी किसानों के विरुद्ध घृणा और हिंसा को उकसाने वाले मंत्री अजय मिश्रा जैसों के इस्तीफे के लिए उनका संघर्ष जारी रहेगा।  

इस लम्बे और सख्त संघर्ष के ज़रिए कृषि क़ानूनों को वापस करवाने में मिली इस जीत को, सीएए और यूएपीए जैसे दमनकारी, विभेदकारी क़ानूनों, लेबर कोड व सार्वजनिक परिसंपत्तियों की बिक्री जैसी  कॉरपोरेट परस्त नीतियों तथा भारत के संविधान व उसकी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व संघीय बुनियाद पर किए जा रहे हमलों के खिलाफ चल रहे संघर्षों को तेज करने के हौसले को दृढ़ करने के काम आना चाहिए। ज़हर है कि कृषि कानूनों के वापसी के बाद अब सीएए और यूएपीए के खिलाफ आंदोलन तेज़ होगा। कृषि कानूनों की वापसी से मिले जीत का जोश भी इस आंदोलन को और तेज़ करने में काम आएगा। 

+*दीपंकर भट्टाचार्य भाकपा(माले) के महासचिव 



Friday, November 12, 2021

एक करोड़ रुपयों के ईनाम वाले किशन दा गरिफ्तार

जंगलों में रह कर भी संचालित करते रहे माओवादी अभियान 

सारंडा वन जहां किशन दा कई बार अज्ञातवास में रहे 
रांची: 12 नवंबर 2021: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::

रांची से आ रही है बहुत बड़ी खबर। सुरक्षा बलों का हाथ नक्सली अभियान पर भरी बना हुआ है। एक शीर्ष नेता प्रशांत किशोर उर्फ़ किशन दा को उनकी पत्नी सहित गरिफ्तार कर लिया गया है। उनके दो और साथी भी ग्रिफ्तार किए गए हैं। इस तरह कुल चार लोग ग्रिफ्तार किए गए। प्रशांत बोस उर्फ़ किशन दा के कई और नाम भी थे। उन्हें ग्रिफ्तार करने की सक्रिय कोशिश चार दशकों से चल रही थी। पांच राज्यों की पुलिस उनके पीछे थी। 

माओवाद के खिलाफ दिनरात एक करके अभियान चला रहे सुरक्षा बलों को उस समय बहुत बड़ी सफलता मिली जब उन्होंने एक करोड़ रुपयों के इनाम वाले शीर्ष नक्सलवादी नेता को गरिफ्तार कर लिया। भाकपा माओवादियों के शीर्ष पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किशन दा, उनकी पत्नी शीला मरांडी समेत चार माओवादियों को झारखंड पुलिस ने शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया। प्रशांत बोस माओवादियों के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो का सचिव भी हैं। वहीं प्रशांत बोस की पत्नी शीला मरांडी भी माओवादियों की शीर्ष सेंट्रल कमेटी की सदस्य है। वह माओवादियों के फ्रंटल आर्गेनाइजेशन नारी मुक्ति संघ की प्रमुख भी है। बहुत से स्थानों पर पार्टी को खड़ा करने में बोस की भूमिका बहुत ही उल्लेखनीय रही। सरकारी नज़र से इस इनामी नक्सलवादी लीडर की अहमियत इसी बात से पता चल जाती है कि प्रशांत बोस पर झारखंड में 70 से अधिक माओवादी कांड दर्ज है।

प्रशांत को गरिफ्तार किए जाने का विस्तृत विवरण भी बहुत दिलचस्प है। झारखंड पुलिस के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय खुफिया एजेंसी आईबी ने प्रशांत बोस समेत अन्य के गिरिडीह के पारसनाथ से सरायकेला लौटने की जानकारी दी थी। इसके बाद सरायकेला पुलिस ने एक स्कार्पियो गाड़ी से प्रशांत बोस, शीला मरांडी, प्रशांत बोस के प्राटेक्शन दस्ता के एक सदस्य व कुरियर का काम करने वाले एक युवक को मुंडरी टोलनाका के पास से गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के बाद चारों माओवादियों को गुप्त स्थान पर रखकर पूछताछ की जा रही है। झारखंड पुलिस ने प्रशांत बोस पर एक करोड़ का ईनाम रखा हुआ है। इनाम की इतनी बड़ी राशि से ही पता चल जाता है कि पुलिस और अन्य सुरक्षा बल इसकी गरिफ्तारी के लिए कितने परेशान रहे होंगें। गौरतलब है कि प्रशांत बोस पर झारखंड में 70 से अधिक माओवादी कांड दर्ज है। शायद अन्य राज्यों की सरगर्मियां मिला कर यह लिस्ट और भी  लम्बी हो जाए।  

लम्बे समय से बीमारी का भी है प्रकोप कोलकाता जाकर करवाता था इलाजअज्ञातवास का जीवन आसान तो नहीं होता। इसके साथ ही उम्र भी काफी है। बहुत सी कठिनाइयां होती हैं इस सब से। छोटीमोटी कई बीमारियां लग जाती हैं जिनका इलाज आवश्यक हो जाता है। पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली है कि प्रशांत बोस की तबीयत बीते कई सालों से खराब थी। लेकिन इसके बावजूद वह लगातार अपने इस संगठन में सक्रिय रहा जिसके लिए वह हमेशां प्रतिबद्ध रहा। जानकारी के मुताबिक प्रशांत दा कोल्हान से पारसनाथ जाकर रह रहा था। पारसनाथ से ही वह प्रोटेक्शन दस्ता के सदस्यों के द्वारा एनएच 2 तक लाया जाता था। इसके बाद कुरियर के द्वारा ही प्रशांत बोस को कोलकाता ले जाया जाता था। हाल ही में प्रशांत बोस कोलकाता से लौटा था। इस तरह इलाज के लिए आने जाने के लिए भी सफर की जो प्रक्रिया अपने जाती वह कम दिलचस्प नहीं है। हर कदम पर सावधानी और सनसनी एक साथ चलते। माओवादी संगठन में इतने बड़े पद पर आसीन प्रशांत दा के लिए इतनी वशिष्ट किस्म की सुरक्षा व्यवस्था स्वाभाविक ही थी। उसका पद बेहद महत्वपूर्ण पद है। 

माओवादी संगठन एमसीसीआई का प्रमुख था प्रशांत बोस

माओवादी विचारधारा को समर्पित संगठनों में पद और ज़िम्मेदारी दोनों बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। माओवादी संगठनों में से कोई अज्ञातवास में चल रहा हो या खुले तौर पर सक्रिय हो दोनों ही तरह के संगठनों में पद, जिम्म्मेदारी और प्रस्ताव लागू करना अहम रहता है। जितना बड़ा पद उतनी ही बड़ी ज़िम्मेदारी। प्रशांत बोस के पास ईआरबी के सचिव के तौर पर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के झारखंड के सीमावर्ती इलाके, असम समेत पूर्वोतर के राज्यों का प्रभार था। साल 2004 में माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर आफ इंडिया (एमसीसीआई) और पीपुल्ज़ वार ग्रुप (पीडब्लूजी) के विलय के पूर्व वह एमसीसीआई का प्रमुख था। विलय के बाद भाकपा माओवादी संगठन में कोटेश्वर राव को प्रमुख बनाया गया था, जबकि बतौर ईआरबी सचिव तब से प्रशांत बोस संगठन में सेकेंड इन कमान था। झारखंड में पारसनाथ, सारंडा, ओड़िसा और बंगाल के सीमावर्ती इलाके में प्रशांत बोस ने ही संगठन को खड़ा किया था। प्रशांत बोस मूलत: पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के यादवपुर का रहने वाला है। पश्चिम बंगाल की पृष्ठभूमि होने के कारण सख्तियों भरी ज़िंदगी जीने के भी आदी बन गए थे प्रशांत दा। 

वृद्धावस्था में संभाले बैठे थे अनुभवों का खज़ाना 

नक्सलवाद और माओवाद के रास्ते पर चलते चलते हुए प्रशांत दा की उम्र तो बढ़ गई लेकिन साथ ही बढ़ गया अनुभवों का खज़ाना। थ्यूरी के साथ साथ प्रेक्टिस में भी बहुत से नए अनुभव मिले। इन नए अनुभवों से थ्यूरी और तीखी होती चली गई। विचारधारा के आधार की ज़मीन और परमार्जित होती रही। इन्हीं अनुभवों के चलते संगठन के नए यूनिट खड़े करने और मौजूदा यूनिटों को मज़बूत करने में उनको महारत हासल है। स्थानीय राजनीति, स्थानीय समस्याओं और स्थानीय हालात व् पर्यावरण के चलते इन अनुभवों से बहुत ही सहायता मिलती है। इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही नक्सली संगठन अपने नए एक्शन प्लान तैयार करते हैं। 

अज्ञातवास के जीवन में भी बहुत एक्सपर्ट भी रहे 

प्रशांत बोस उर्फ़ किशन दा अज्ञातवास की ज़िंदगी के बहुत ही अभ्यस्त रहे और इसमें निपुण भी हो गए ,जल्दी किए उनकी सरगर्मियां किसी की नज़र में न न आतीं। करीब पांच वर्ष पूर्व तो स्थिति यह बन गई थी उनके ज़िंदा होने का भी सरकार को कुछ पक्का पता नहीं था। उन दिनों उनके ही निकट एक सहयोगी को बयान देना पड़ा कि किशन दा ज़िंदा हैं और कमान उनके हाथ में है। ये भी खबर थी कि किशन दा जीवित नहीं है। मगर 25 लाख के इनामी नक्सली कमांडर कान्हू मुंडा ने खुलासा किया था कि किशन दा जिंदा हैं। वही नक्सलवाद की कमान संभाले हुए हैं। सबसे बड़ी बात तो यह वे बंगाल के जंगलों में नहीं, झारखंड के सारंडा जंगल से नक्सल गतिविधियां चला रहे हैं। झारखंड सरकार ने उस पर एक करोड़ का इनाम रखा है।

 किशन दा सारंडा सहित कई जगहों पर शरण लेते रहे

पांच सात वर्ष पूर्व के उस दौर में भी किशन दा पर ओड़िशा, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने भी इनाम घोषित कर रखा है।  किशन दा ने असीम मंडल उर्फ आकाश को कोल्हान समेत पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में संगठन मजबूत करने की जिम्मेवारी सौंपी है। उन दिनों में भी प्रशांत उर्फ़ किशन दा सारंडा सहित कई जगहों पर शरण लेते रहे। झारखंड  सारंडा के जंगल बहुत गहन जंगल हैं। सारंडा वन झारखंड-ओडिशा सीमा में फैला हुआ है, और यहाँ बड़ी संख्या में पशु, पक्षी और सरीसृप प्रजातियां पाई जाती हैं। 'सारंडा' शब्द का अर्थ है हाथियों और वन को इसका नाम बड़ी संख्या में यहाँ रहने वाले हाथियों के कारण मिलता है। जंगल दुनिया के उन कुछ स्थानों में से एक है, जहां लुप्तप्राय उड़ने वाली छिपकली रहती है। इस तरह यह एक महत्वपूर्ण स्थान है जो सैलानी स्थल ही है। सैलानी स्थल होने के कारण यहां अज्ञातवास के बावजूद जनसाधारण में से सिलेक्टिड लोगों से राब्ता बनाना आसान हो जाता है। 


Sunday, September 26, 2021

नई दिल्ली में वामपंथी उग्रवाद पर समीक्षा बैठक

प्रविष्टि तिथि: 26 SEP 2021 4:10 PM by PIB Delhi

 केंद्रीय गृह मंत्री एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने  की अध्यक्षता 


नई दिल्ली
26 सितंबर 2021: (पीआईबी//नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::

नक्सलवाद से प्रभावित राज्यों की समीक्षा के लिए एक विशेष बैठक गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई। जिसमें कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई। विच्जविमर्श में कई बातें उभर कर सामने आईं। जो तथ्य और नुक्ते इस समीक्षा में सामने आए उनका संक्षिप्त रूप हम सबसे पहले दे रहे हैं। 

*प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए कटिबद्ध है

*प्रधानमंत्री की अगुवाई में वामपंथी उग्रवाद पर नकेल कसने में मिल रही है सफलता 

*केंद्र और राज्यों के साझा प्रयासों से लगातार कामयाबी मिल रही है 

*दशकों की लड़ाई में हम ऐसे मुकाम पर पहुंचे हैं जहाँ सफलता निकट है 

*पहली बार मृत्यु की संख्या 200 से कम है और यह बहुत बड़ी उपलब्धि है

*जब तक हम वामपंथी उग्रवाद की समस्या से पूरी तरह निजात नहीं पाते तब तक देश का और वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों का पूर्ण विकास संभव नहीं

*प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) की तैनाती पर होने वाले राज्यों के स्थायी ख़र्च में कमी लाने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है

*इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2018-19 के मुक़ाबले 2019-20 में CAPFs की तैनाती पर होने वाले राज्यों के ख़र्च में लगभग 2900 करोड़ रूपए की कमी आई है

*भारत सरकार कई सालों से राजनीतिक दलों पर ध्यान दिये बिना दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ती रही है, जो हथियार छोड़कर लोकतंत्र का हिस्सा बनना चाहते हैं उनका दिल से स्वागत है लेकिन जो हथियार उठाकर निर्दोष लोगों और पुलिस को आहत करेंगे, उनको उसी तरह जवाब दिया जायेगा

*असंतोष का मूल कारण आज़ादी के बाद 6 दशकों में विकास ना पहुंच पाना है, लेकिन अब प्रधानमंत्री जी की अगुवाई में विकास हो रहा है और नक्सली भी ये बात समझ चुके हैं कि विकास होने पर निर्दोष लोग उनके बहकावे में नहीं आएंगे इसीलिए विकास की गति निर्बाध रूप से जारी रखना बहुत ज़रूरी है

*जिस समस्या के कारण पिछले 40 वर्षों में 16 हज़ार से अधिक नागरिकों की जान गई हैं, उसके ख़िलाफ़ लड़ाई अब अंत तक पहुंची है और इसकी गति बढ़ाने और इसे निर्णायक बनाने की ज़रूरत है

*हाल ही में भारत सरकार ने अनेक उग्रवादी गुटों, विशेषकर उत्तरपूर्व में, के साथ समझौता कर उनसे हथियार डलवाने में सफलता हासिल की है

*वामपंथी उग्रवादियों के आय के स्रोतों को निष्प्रभावी करना बेहद ज़रूरी है

अब चर्चा विस्तार से:

भारत सरकार वाम उग्रवाद को समाप्त करने में लगातार सक्रिय है। जंग और नीति दोनों पर ध्यान दिया जा रहा है। केंद्रीय गृह मंत्री एवं सहकारिता मंत्री, श्री अमित शाह ने आज नई दिल्ली में वामपंथी उग्रवाद पर एक समीक्षा बैठक की अध्यक्षता की। बैठक में केन्द्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री, श्री गिरिराज सिंह, जनजातीय मामलों के मंत्री श्री अर्जुन मुंडा, दूरसंचार, सूचना-प्रौद्योगिकी और रेल मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव, सड़क परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री जनरल वी के सिंह और केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री श्री नित्यानंद राय भी उपस्थित थे। 

बैठक में बिहार, ओडिशा, महाराष्ट्र, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और झारखंड के मुख्यमंत्री और आंध्र प्रदेश की गृह मंत्री, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और केरल के वरिष्ठ अधिकारी, केन्द्रीय गृह सचिव, केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के शीर्ष अधिकारी और केन्द्र तथा राज्य सरकार के अनेक वरिष्ठ अधिकारी भी शामिल हुए।

श्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केन्द्र सरकार नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के विकास के लिए कटिबद्ध है। उन्होंने कहा कि यह आनंद का विषय है कि प्रधानमंत्री जी की अगुवाई में वामपंथी उग्रवाद पर नकेल कसने में केंद्र और राज्यों के साझा प्रयासों से बहुत सफलता मिली है। श्री शाह ने कहा कि एक तरफ जहां वामपंथी उग्रवाद की घटनाओं में 23 प्रतिशत की कमी आई है वहीं मौतों की संख्या में 21 प्रतिशत की कमी आई है। श्री अमित शाह ने कहा कि दशकों की लड़ाई में हम एक ऐसे मुकाम पर पहुंचे हैं जिसमें पहली बार मृत्यु की संख्या 200 से कम है और यह हम सबकी साझा और बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि जब तक हम वामपंथी उग्रवाद की समस्या से पूरी तरह निजात नहीं पाते तब तक देश का और वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों का पूर्ण विकास संभव नहीं है। केंद्रीय गृह मंत्री ने कहा कि इसको खत्म किए बिना न तो लोकतन्त्र को नीचे तक प्रसारित कर पाएंगे और न ही अविकसित क्षेत्रों का विकास कर पाएंगे, इसलिए हमने अब तक जो हासिल किया है उस पर संतोष करने की बजाय जो बाकी है उसे प्राप्त करने के लिए गति बढ़ाने की जरूरत है।

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि भारत सरकार कई सालों से राजनीतिक दलों पर ध्यान दिये बिना दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ती रही है। श्री शाह ने कहा कि जो हथियार छोड़कर लोकतंत्र का हिस्सा बनना चाहते हैं उनका दिल से स्वागत है लेकिन जो हथियार उठाकर निर्दोष लोगों और पुलिस को आहत करेंगे, उनको उसी तरह जवाब दिया जायेगा। उन्होंने कहा कि असंतोष का मूल कारण है आज़ादी के बाद पिछले 6 दशकों में विकास ना पहुंच पाना, इससे निपटने के लिए वहां तेज़ गति से विकास पहुंचाना और आम जनता और निर्दोष लोग उनके साथ ना जुड़ें, ऐसी व्यवस्था करना अति आवश्यक है। श्री अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में विकास हो रहा है और अब नक्सली भी ये बात समझ चुके हैं कि विकास होने पर निर्दोष लोग उनके बहकावे में नहीं आएंगे इसीलिए विकास की गति निर्बाध रूप से जारी रखना बहुत ज़रूरी है। इन दोनों मोर्चों पर सफल होने के लिए ये बैठक बहुत मह्त्वपूर्ण है। उन्होंने राज्यों से आग्रह किया कि वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए प्रभावित राज्यों के मुख्य सचिव कम से कम हर तीन महीने में पुलिस महानिदेशक और केन्द्रीय ऐजेंसियों के अधिकारियों के साथ समीक्षा बैठक करें, तभी हम इस लड़ाई को आगे बढ़ा सकते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले दो साल में जिन क्षेत्रों में सुरक्षा पहुंच नहीं थी, वहां सुरक्षा कैंप बढ़ाने का काफी बड़ा और सफल प्रयास किया गया है, विशेषकर छत्तीसगढ़ में, साथ ही महाराष्ट्र और ओडिशा में भी सुरक्षा कैंप बढ़ाए गए हैं। श्री शाह ने कहा कि अगर मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक के स्तर पर नियमित समीक्षा की जाती है, तो निचले स्तर पर समन्वय की समस्याएं अपने आप हल हो जाएंगी। श्री अमित शाह ने कहा कि जिस समस्या के कारण पिछले 40 वर्षों में 16 हज़ार से अधिक नागरिकों की जान गई हैं, उसके ख़िलाफ़ लड़ाई अब अंत तक पहुंची है और इसकी गति बढ़ाने और इसे निर्णायक बनाने की ज़रूरत है।

श्री अमित शाह ने कहा कि हाल ही में भारत सरकार ने अनेक उग्रवादी गुटों, विशेषकर उत्तरपूर्व में, के साथ समझौता कर उनसे हथियार डलवाने में सफलता हासिल की है। बोड़ोलैंड समझौता, ब्रू समझौता, कार्बी आंगलोंग समझौता और त्रिपुरा के उग्रवादियों द्वारा आत्मसमर्पण समेत अबतक लगभग 16 हज़ार कैडर समाज की मुख्यधारा में शामिल हो चुके हैं। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि जितने भी लोग हिंसा छोड़कर मुख्यधारा में आना चाहते हैं, उनका हम स्वागत करते हैं।

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री ने कहा कि राज्य प्रशासन को सक्रिय होकर केन्द्रीय बलों के साथ तालमेल के साथ आगे बढ़ना चाहिए। श्री अमित शाह ने कहा कि केन्द्रीय बलों के बारे में जिन राज्यों ने मांग भेजी हैं, उन्हें पूरा करने का प्रयास किया गया है। केन्द्रीय गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (CAPFs) की तैनाती पर होने वाले राज्यों के स्थायी ख़र्च में कमी लाने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2018-19 के मुक़ाबले 2019-20 में CAPFs की तैनाती पर होने वाले राज्यों के ख़र्च में लगभग 2900 करोड़ रूपए की कमी आई है। प्रधानमंत्री ने निरंतर इसकी समीक्षा की है और लगातार हम सबका मार्गदर्शन कर रहे हैं।

श्री अमित शाह ने कहा कि वामपंथी उग्रवादियों के आय के स्रोतों को निष्प्रभावी करना बेहद ज़रूरी है। केन्द्र और राज्य सरकारों की ऐजेंसियों को मिलकर एक व्यवस्था बनाकर इसे रोकने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करते हुए कहा कि वे वामपंथी उग्रवाद की समस्या को अगले एक साल तक प्राथमिकता दें, जिससे इस समस्या का स्थायी समाधान हो सके। उन्होंने कहा कि इसके लिए दबाव बनाने, गति बढ़ाने और बेहतर समन्वय की ज़रूरत है।

वामपंथी उग्रवाद पिछले कई दशकों से एक अहम सुरक्षा चुनौती रहा है। हालांकि यह मुख्य रूप से राज्य का विषय है लेकिन केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने वामपंथी उग्रवाद के ख़तरे से समग्र रूप से निपटने के लिए 2015 से एक ‘राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना' बनाई है। इस योजना की प्रगति और स्थिति की लगातार सघन निगरानी की जा रही है और यह एक बहुआयामी दृष्टिकोण वाली नीति है।

प्रभावित क्षेत्रों में ग़रीब और कमज़ोर वर्ग तक विकास पहुंचाने के लिए विकासशील गतिविधियों पर अधिक ज़ोर देने के साथ ही हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता, वामपंथी उग्रवाद के ख़तरे से निपटने की ‘राष्ट्रीय नीति और कार्य योजना’ के महत्वपूर्ण पहलू हैं।

इस नीति के अंतर्गत, केन्द्रीय गृह मंत्रालय, सीएपीएफ बटालियनों की तैनाती, हेलीकॉप्टरों और यूएवी के प्रावधान और भारतीय रिजर्व बटालियनों (आईआरबी) / विशेष भारत रिजर्व बटालियनों (एसआईआरबी) की मंजूरी के जरिए क्षमता निर्माण और सुरक्षा तंत्र की मज़बूती के लिए राज्य सरकारों को समर्थन दे रहा है। राज्य पुलिस के आधुनिकीकरण और प्रशिक्षण के लिए पुलिस बल के आधुनिकीकरण (एमपीएफ), सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) योजना और विशेष बुनियादी ढांचा योजना (एसआईएस) के तहत भी धनराशि उपलब्ध कराई जाती है।

वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित राज्यों के विकास के लिए, भारत सरकार ने कई विकासात्मक पहल की हैं जिनमें 17,600 किलोमीटर सड़कों को मंज़ूरी शामिल है, जिसमें से 9,343 किलोमीटर सड़कों का निर्माण आरआरपी-I, आरसीपीएलडब्ल्यूई के तहत पूरा हो चुका है। वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों में दूरसंचार सुविधाओं में सुधार के लिए 2,343 नए मोबाइल टावर लगाए गए हैं और अगले 18 महीनों में 2,542 अतिरिक्त टावर लगाए जाएंगे। वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों में लोगों के वित्तीय समावेशन के लिए 1,789 डाकघर, 1,236 बैंक शाखाएं, 1,077 एटीएम और 14,230 बैंकिंग प्रतिनिधि खोले गए हैं और अगले एक वर्ष में 3,114 डाकघर और खोले जाएंगे। वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय (ईएमआरएस) खोलने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों के लिए कुल 234 ईएमआरएस स्वीकृत किए गए हैं, इनमें से 119 कार्यरत हैं।

सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों में विकास को और गति देने के लिए विशेष केंद्रीय सहायता (एससीए) योजना के तहत, 10,000 से अधिक परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनमें से 80% से अधिक पूरी हो चुकी हैं। इस योजना के तहत वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों को 2,698.24 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं। एसआईएस के तहत 992 करोड़ रुपये की परियोजनाओं को मंज़ूरी दी गई है और 152 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि जारी कर दी गई है। एसआरई के तहत अप्रैल, 2014 से पिछले 7 वर्षों में 1,992 करोड़ रुपये की राशि जारी की गई है, जो कि सात वर्षों से पहले की अवधि की तुलना में 85% अधिक है।

केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने कुछ ज़िलों को वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित ज़िलों के रूप में वर्गीकृत किया था और वामपंथी उग्रवाद से निपटने के लिए प्रभावित राज्यों को विशिष्ट संसाधन जुटाने के लिए सुरक्षा संबंधी व्यय (एसआरई) योजना के तहत कवर किया था। इन एसआरई जिलों में से, देश भर में वामपंथी उग्रवाद संबंधी हिंसा वाले ज़िलों में से 85% से अधिक जिलों को सुरक्षा और विकास से संबंधित संसाधनों की केन्द्रित उपलब्धता के लिए 'सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों' के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

पिछले एक दशक में, हिंसा के आंकड़ों और इसके भौगोलिक फैलाव, दोनों में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। वामपंथी उग्रवाद संबंधित हिंसा की घटनाएं 2009 में 2,258 के उच्चतम स्तर से 70% कम होकर वर्ष 2020 में 665 रह गई हैं। मौतों की संख्या में भी 82% की कमी आई है जो वर्ष 2010 में दर्ज 1,005 के उच्चतम आंकड़े से घटकर वर्ष 2020 में 183 रह गई हैं। माओवादियों के प्रभाव वाले ज़िलों की संख्या भी वर्ष 2010 में 96 से वर्ष 2020 में घटकर सिर्फ 53 ज़िलों तक सीमित रह गई है। माओवादियों को अब सिर्फ़ कुछ ही इलाक़ों में 25 ज़िलों तक सीमित कर दिया गया है जो कि देश के कुल वामपंथी उग्रवाद की 85% हिंसा के लिए ज़िम्मेदार हैं।

बेहतर स्थिति के कारण, एसआरई जिलों की संख्या की पिछले तीन वर्षों में दो बार समीक्षा की गई, जो अप्रैल, 2018 में 126 ज़िलों से घटकर 90 और फिर जुलाई, 2021 में 70 हो गए। सबसे अधिक वामपंथी उग्रवाद प्रभावित ज़िलों की संख्या भी अप्रैल, 2018 में 35 से घटकर 30 और फिर जुलाई, 2021 में इसे और कम करके 25 कर दिया गया।

वामपंथी उग्रवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई अब महत्वपूर्ण चरण में है और सरकार जल्द ही इस ख़तरे को बेहद कम करने के प्रति आशान्वित है।

वामपंथी आतंकवाद के भौगोलिक प्रसार में कमी की बात नोट की गई है। मीटिंग में जो तथ्य प्रस्तुत किए गए वे तथ्य इस कमी को ही दर्शाते हैं। 


इसी तरह वामपंथी उग्रवाद संबंधी घटनाएं भी लगातार कम होती जा रही हैं। सरकार इस दिशा में भी पूरी तरह से अग्रसर है। 


इस कमी के परिणामस्वरूप मौतें भी कम हो रही हैं। गौरतलब है की नक्सल अभियान में बहुत सी अनमोल जानें जा चुकी हैं। 


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एनडब्ल्यू  / आरके / एवाई / आरआर

Thursday, September 2, 2021

कॉमरेड रामनाथ श्रद्धांजलि कार्यक्रम 12 सितंबर को होगा

 2nd September 2021:04:29 PM

 जीवन भर वाम और बदलाव को समर्पित रहे कामरेड रामनाथ 

चंडीगढ़: 02 सितंबर 2021: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::

वाम बार बार बंटा। बार बार टूटा। कई नए संगठन खड़े हुए। कई नए दल बने। बंट कर भी, अलग अलग हो कर भी ये लोग किसी न किसी रूप में इसी विचारधारा को मज़बूत बनाते रहे और आगे चलाते रहे। इस अभियान के लिए बहुत से लोग चुपचाप खामोशी से काम करते रहे। उनकी साधना बहुत लम्बी भी है और महत्वपूर्ण भी। बहुत सी कुर्बानियां हैं उनकी। इन्हीं में से एक थे कामरेड रामनाथ। 

भारत की कम्युनिस्ट लीग (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के संस्थापक कॉमरेड रामनाथ बीती 31 अगस्त को हमारे बीच नहीं रहे। उनकी उम्र अस्सी साल से ऊपर थी, वह लम्बे समय से गंभीर रूप से बीमार चल रहे थे और अब दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। उनकी याद में श्रद्धांजलि समागम 12 सितबंर को गुरशरन कला भवन, मुल्लांपुर में किया जा रहा। यह जानकारी मार्क्सवादी पत्रिका ‘प्रतिबद्ध’ के संपादक सुखविंदर की और से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में दी गई। उन्होंने कहा है कि कॉमरेड रामनाथ का निधन भारत के कम्युनिस्ट क्रांतिकारी आन्दोलन को न पूरी हो सकने वाली क्षति है।

*कॉमरेड सुखविंदर ने बताया कि कॉमरेड रामनाथ के जीवन का बड़ा हिस्सा (लगभग छः दशक) भारत की मेहनतकश जनता के मुक्ति संग्राम को समर्पित रहा। उनके क्रांतिकारी राजनीतिक जीवन की शुरुआत भारत की कम्युनिस्ट पार्टी से हुई। 1964 में इस पार्टी में फूट पड़ने के बाद वे नई बनी भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में शामिल हो गए। 1969 में भाकपा (मा.ले.) बनने के बाद राम नाथ इस पार्टी में शामिल हुए। 1978 में उनके नेतृत्व में भारत की कम्युनिस्ट लीग (मा.ले.) की स्थापना हुई। उन्होंने भारतीय समाज का गहराई से अध्ययन किया, नव-जनवादी क्रांति के कठमुल्लेपन को तोड़कर, समाजवादी क्रांति का कार्यक्रम दिया। उन्होंने कम्युनिस्ट आन्दोलन को आज़ादाना सोच की वैज्ञानिक हिम्मत दी। उन्होंने कहा कि कॉमरेड रामनाथ अपने पीछे एक समृद्ध विरासत छोड़ गए हैं, जिसे आत्मसात करते हुए समाजवादी क्रांति की दिशा में जनांदोलन को आगे बढ़ाना हमारा कार्यभार है। उन्होंने कॉमरेड रामनाथ श्रद्धांजलि समागम में आन्दोलन के कार्यकर्ताओं और शुभचिंतकों को पहुँचने की अपील की है।

*कामरेड सुखविदंर प्रतिबद्ध के सम्पादक भी हैं और इस क्षेत्र के ज्ञान पर उनकी काफी पकड़ है।