पुस्तक चर्चा//गाथा इक सूरमे दी//सुखदर्शन नत
मानसा//लुधियाना: 16 मई 2020: (पीपुल्ज़ मीडिया लिंक)::
पंजाब के नक्सलवादी आन्दोलन में से उभर कर सामने आये लोकप्रिय जनतक और राजनैतिक नेतायों की पहली पंक्ति में अआने वाले कामरेड बलदेव सिंह मान को शहीद हुए तकरीबन 34 वर्ष गुजर चुके हैं। इतनी लम्बी अवधि के बाद उनके जीवन पर किसी पुस्तक का छपना स्वयं में ही इस बात का सबूत है कि न केवल वह क्रन्तिकारी आदर्श, जिनके लिए संघर्ष करते हुए कामरेड बलदेव मान ने अपनी जान कुर्बान की थी, आज भी समाज में उसी तरह प्रासंगिक हैं, बल्कि मान के साथी और वारिस अभी भी उसी शिद्दत, लगन और हिम्मत से उस संघर्ष को आगे बढ़ा रहे हैं।
इस पुस्तक के सम्बन्ध में विशेष बात यह भी है कि पुस्तक का सम्पादक कामरेड हरभगवान भीखी, बलदेव मान का समकाली नहीं है, बल्कि मान की शहादत के समय उसकी उम्र केवल 11 वर्ष की थी। वह कोई अकादमिक खोजकर्ता या इतिहासकार भी नहीं है न ही उसका कामरेड मान के कार्यक्षेत्र अमृतसर के साथ या उनके राजनीतिक दल के साथ कोई भी संगठनात्मक सम्बन्ध रहा। हरभगवान तो पंजाब के दक्षिण की तरफ सहित मानसा ज़िले में जन्म और पला बढ़ा। वह जीवन से सीपीआई (एम एल) लिबरेशन का पूर्णकालिक सक्रिय कार्यकर्ता है। उसकी कर्मभूमि भी अब तह मालवा क्षेत्र ही रहा। पुस्तक प्रकाशित करने जैसे जिस कार्य की अपेक्षा कामरेड मान के नज़दीकी साथियों या सियासी हमसफरों से की जाती थी वह कार्य हरभगवान ने समय, सम्पर्कों गंभीर वित्तीय संकटों के बावजूद कामरेड मान के कार्यक्षेत्र से ढाई सो किलोमीटर दूर रहने के बावजूद पूरा कर दिखाया। आप इसे पंजाबी में पढ़ सकते हैं -नक्सलबाड़ी-में बस यहां क्लिक करके
इसे क्रन्तिकारी आंदोलन से बिछुड़ चुके नेताओं और शहीदों के प्रति उसकी जनून जैसी लगन ही कहा जा सकता है और इसी वजह से वह इस बेहद कठिन और बुरी तरह पिछड़ चुके महत्वपूर्ण कार्य को पूरा कर दिखने में सफल रहा। परिणाम स्वरूप शहीद मान की स्मृति में यह पुस्तक आपके हाथों में पहुंच सकी। इससे पहले वह इंकलाबी लहर की जानीपहचानी महिला नेता (स्वर्गीय) कामरेड जीता कौर और राज्य के प्रथम पंक्ति के नक्सली शहीद कामरेड अम्र सिंह अच्चरवाल से सबंधित दो पुस्तकों को भी जनता तक पहुंचा चुका है। कामरेड मान से सबंधित यह पुस्तक हरभगवान की तीसरी ऐसी खोज पूर्ण पुस्तक है जो नक्सली आंदोलन को समर्पित है।
ूँ बलदेव मान से सबंधित पुस्तक सम्पादित करने का प्रयास कोई पहली कोशिश नहीं है। हरभगवान की तरफ से यह प्रोजेक्ट हाथ में लेने से करीब दस वर्ष पूर्व पंजाबी के जानेपहचाने कहानीकार अजमेर सिद्धु ने भी नक्सलवादी आंदोलन पर पुस्तक तैयार करने का प्रयास बहुत ही जोशो खरोश और उत्साह के साथ साथ क्रन्तिकारी भावना को लेकर ही शुरू किया था। उन्होंने बहुत सी समग्री संकलित भी कर ली थी लेकिन लहर में मौजूद शक्की स्वभाव और संकीर्ण सोच के हंद लोगों के असहयोग और बेतुके किंतु परंतु वाले सिलसिले ने उसे इतना परेशान कर दिया की उसने जहां से यह प्रोजेक्ट शुरू किया था उसे वहीँ पर समाप्त कर दिया। इस सब के बावजूद इसे अजमेर सिद्धु की खुलदिली ही कहना चाहिए कि जब हरभगवान ने इस प्रोजेक्ट को हाथ में ले कर अजमेर सिद्धु से सम्पर्क किया तो उन्होंने सारी की सारी सामग्री हरभगवान के हवाले कर दी। इसके साथ ही हर सम्भव सहयोग का भी वायदा किया। इस तरह मैं गवाह हूं कि कामरेड मान के परिवार, रिश्तेदारों, नज़दीकी दोस्तों-मित्रों-संग्रामी साथियों और डाक्टर अवतार सिंह ओठी ने भी इस पुस्तक के लिए बहुत सहयोग दिया। उनके पास कामरेड की यादों की जो भी भी पूंजी जिस जिस रूप में भी थी उसे हरभगवान के हवाले कर दिया। इनमें शहीद मान की रचनाएं भी थीं।
इस पर भी इस किताब की समुचित सामग्री कोका अधीन करते हुए मुझे अहसास हुआ कि पंजाब के नक्सली धड़ों के ज़्यादातर नेता लहर के इतिहास, इसमें समय समय पर उठने वाली बहसों के संबंध में खुल कर बात करने, अपनी यादों के कड़वे मीठे अनुभवों पर लिखने या मांग करने पर भी ऐसा रचनात्मक सहयोग देने के मामले में बहुत ही कंजूस या "शरमाकल" स्वभाव के हैं। वे नई समाजिक सियासी हालतों के नज़रिये से भी अतीत को फिर से देखने, जांचने और परखने की बात पर कोई उत्साह नहीं दिखाते।
यह सब किसी जीवित और आगे बढ़ने के इच्छा रखने वाली इंक़लाबी लहर के लिए कोई शुभ लक्षण नहीं हैं।
नेताओं की तरफ से नया लिखने या घटनाओं और घटनक्रमों का नए सिरे से विश्लेषण करने के मामले में उदासीन होने का ही परिणाम है कि इस पुस्तक के लिए सामग्री संग्रहित करने के लिए सम्पादक को उन्हीं रचनाओं का सहारा लेना पड़ा जो कामरेड मान की शहादत के बाद विभिन्न क्रन्तिकारी पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। मांग करने के बावजूद एक दो को छोड़ कर किसी ने (जिनमें मैं खुद ही शामिल हूँ) भी पुस्तक अपना ताज़ा लेख/संस्मरण नहीं लिखा।
इसी लिए पुस्तक को पढ़ते हुए पाठक महसूस करेंगे कि इस पुस्तक में कामरेड मान के हंसी मज़ाक वाले स्वभाव, इंकलाबी लगन, निडरता, बेपरवाही, लोकप्रियता और सफलता पूर्वक लड़े गए जन आंदोलनों का ज़िक्र और ऐसे कई तरह के लिश्कारे तो कई जगहों पर नज़र आते हैं लेकिन उस दौर और उसके बाद समाजिक व सियासी हालात में आई तब्दीलियों का विवरण और इन तव्दीलियों के पीछे कार्यशील शक्तियों व कारणों का कहीं भी सटीक विश्लेषण कहीं नज़र ही नहीं आता।
नई पीढ़ी के सूझवान पाठकों के मनों में जिज्ञासा होगी की आनंदपुर साहिब का प्रस्ताव क्या था? कैसे पंजाब के साथ धक्के की बात करने वाला, राज्यों को अधिक अधिकारों और फैडरल ढांचे को कायम करने जैसी लोकतान्त्रिक मांगों पर बहुत बड़ा सियासी आंदोलन खड़ा करने वाला, पंजाब के दरियाई पानियों के अनुचित बटवारे के खिलाफ बोलने और मार्कसी पार्टी के साथ मिल कर एस वाई एल नहर की खुदाई के खिलाफ कपूरी गांव में मोर्चा लगाने वाला अकाली दाल अचानक "धर्म युद्ध" की तरफ कैसे फिसल गया? आपरेशन नीला तारा जैसे कहर भरे और अमानवीय कुकृत्य और इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद नवंबर-1984 में देश भर में दिल्ली सहित अन्य स्थानों पर राजीव गांधी हकूमत की तरफ से करवाए गए सिखों के भयानक हत्याकांड से महज़ 8 महीने बाद ही अकाली दल का प्रधान संत हरचंद सिंह लोंगोवाल 24 जुलाई 1985 को उसी राजीव गाँधी के साथ बैठने और "राजीव लोंगोवाल समझौते" के नाम से जाने जाते पूरी तरह निक्क्मे और पंजाब विरोधी समझौते पर हस्ताक्षर करने को क्यों और कैसे मान गया? इतिहास में एक जुझारू पार्टी के तौर पर उभरा अकाली दल धीरे धीरे मोदी की साम्प्रदायिक और तानाशाह केंद्रीय सत्ता का बहुत ही वफादार सहयोगी कैसे बन गया? खालिस्तानी उभार के ज़बरदस्त उभार और शर्मनाक पतन के क्या कारण थे?पंजाब समस्या पर वाम के अलग अलग धड़ों/दलों की समझ और पहुंच क्या थी?इत्यादि बहुत से सवाल हैं जिन पर यह पुस्तक चर्चा करती नज़र नहीं आती।
ऐसी किसी भी पुस्तक के लेखक या सम्पादक के रास्ते में आने वाली एक निश्चित समस्या यह है कि क्रन्तिकारी लहर और इसके अलग अलग सियासी या जन संगठनों से सबंधित पांडुलिपियां, रचनाएँ, प्रकाशित सामग्री, दस्तावेज़ों ा यहाँ तक कि उनकी पत्र पत्रिकाएं की फाईलों की सही संभाल और बाकायदा रेकार्ड रखने के मामले में हालत कोई ज़्यादा अच्छी नहीं है। यही कारण है कि ज़रूरत की छपी हुई सामग्री या तो ढूंढे भी नहीं मिलती और या फिर "गुप्त रेकार्ड" के नाम पर इंकार कर दिया जाता है। ऐसी हालत में लेखक के पास बस यही उम्मीद बची है कि जिस शहीद पर पुस्तक लिखनी है उसका कोई साथी मिल जाये को व्यक्तिगत रुचि के चलते कोई रेकार्ड या समाग्री संभाल कर बैठा हो। साथ ही यह भी आवश्यक है कि वह खज़ाना लेखक/सम्पादक के साथ सांझा भी करने को तैयार हो। आप समझ सकते है ऐसा सब कुछ कोई लाटरी लगने जैसा ही होता है जिसकी कोई भी गारंटी नहीं होती।
इन सभी समस्यायों को आपके साथ बांटने का मकसद यही है कि यदि इन सभी दिक्क्तों के बावजूद कामरेड मान की शहादत के साढ़े तीन दश्कों के बाद भी हरभगवान इस पुटक की सामग्री एकत्र करके उसे छपवा लेता है तो यह किसी बहुत बड़ी उपलब्धि से कम नहीं है। विशेष तौर पर ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार पर कामरेड मान का लेख एक ऐसी वशिष्ठ रचना है जो साबित करती है कि इस हमले पर कामरेड मान और इंकलाबीयों की सोच और पहुंच सीपीआई/सीपीएम मार्का वाम दलों से पूरी तरह अलग थी, जो खालिस्तानी आतंकवाद के विरोध और "देश की एकता अखंडता की रक्षा" की आड़ में इन समस्यायों को पैदा करने वाली केंद्रीय सत्ता के पीछे जा कर खड़ी हो गईं थीं।
मैं समझता हूं कि यह प्रेरणामय पुस्तक केवल कामरेड बलदेव सिंह मान को बनती हुई उचित श्रद्धांजलि ही नहीं बल्कि अलग अलग इंकलाबी नेताओं और शहीदों पर लिखी जाने वाली ऐसी पुस्तकों में अनजाने ही ऐसे बहुत घटनाक्रम, तारीखें, नाम-जगह, और व्यक्तियों के हवाले सुरक्षित हो जाते हैं जिन्होंने आने वाली पीढ़ियों के इतिहासकारों के लिए बहुत ही लाभप्रद्ध और सटीक हवाला स्रोत बनना होता है। मैं आशा करता हूँ की साथी हरभगवान भविष्य में लेखन के क्षेत्र में और भी अधिक गंभीरता और मेहनत के साथ कार्य करेगा।
(पंजाबी से अनुवाद-हिंदी स्क्रीन डेस्क)
मानसा: 27 अक्टूबर 2019
सुखदर्शन नत्त
(केंद्रीय कमेटी सदस्य)
सीपीआई (एम एल लिबरेशन)
मोबाईल नंबर: +91 94172-33404
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