Thursday, November 25, 2021

बटुकेश्वर दत्त और सावरकर का नाम एक साथ नहीं होगा

भाजपा और संघ के खिलाफ भाकपा माले खुल कर आई मैदान में 


पटना: 25 नवंबर 2021: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन डेस्क)::

इतिहास में मिलावट अक्सर होती रही है। इसे चुपचाप देखने वालों की संख्या भी काफी रही है। जो बोले वो भी कोई ज़्यादा नहीं थे। इस बार इतिहास को सुरक्षित बचाए रखने के लिए जो लोग आगे आए हैं उनमें भाकपा (माले) लिबरेशन भी अग्रणी पंक्ति  में शामिल है। पार्टी ने कहा है कि बटुकेश्वर दत्त और सावरकर का नाम एक साथ नहीं लिया जा सकता। हम इसका विरोध करते हैं और करते रहेंगे। इस मकसद के लिए बटुकेश्वर दत्त की बेटी भारती बागची भी पार्टी के साथ आई है। भारतीय जनता पार्टी ने आजादी के 75 साल पूरा होने पर अमृत महोत्सव मनाने का जो सिलसिला शुरू किया है उसका विरोध करने के लिए आगे आई है भाकपा माले। भाकपा माले का कहना है की भाजपा और आर एस एस इतिहास को बदलने की कुचेष्टाएं कर रहे हैं। आज़ादी के अमृत महोत्स्व की हकीकत यह है  की कंगना रनौत सरेआम आज़ाद का मज़ाक उड़ा रही है।  भाकपा माले का स्पष्ट शब्दों में मानना है कि भाजपा भारत के इतिहास को बदल देना चाहती है लेकिन हम ज़ह सब नहीं होने देंगें।  अभिनेत्री कंगना रनोट के बयान को भाजपा की उसी सोच से जोड़ कर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने कहा था कि 1947 में भारत को भीख मिली थी और असली आजादी 2014 में मिली। इस ब्यान से असलियत को देखना मुश्किल नहीं रह जाता। 

भाकपा (माले) ने तय किया है कि वह दो साल तक जन अभियान चलाएगी और आजादी का सच लोगों को बताएगी। 

बटुकेश्वर दत्त के जन्म दिन पर भाकपा (माले) द्वारा 'आजादी के 75 साल-जनअभियान' की शुरूआत भी की गई है। 

शहीद भगत सिंह के क्रन्तिकारी साथी बटुकेश्वर दत्त के जन्म दिन पर आजादी के 75 साल: जनअभियान की शुरूआत। वही बी के दत्त जिन्होंने आज़ादी के बाद भी केवल देश के लिए सोचा। 

इस जन अभियान के संबंध में बनाए कार्यक्रम के मुताबिक पार्टी ने बताया कि प्रख्यात इतिहासकार प्रो. ओपी जायसवाल की अध्यक्षता में चलेगा जनअभियान। 

पार्टी ने सख्त स्टैंड लेते हुए अपना संकल्प दोहराया कि खून-पसीने से निर्मित आजादी के आंदोलन के इतिहास को हड़पने व विकृत नहीं करने देंगे।  इस आशय की बात दीपंकर भट्टाचार्य ने स्पष्ट शब्दों में कही। 

भगत सिंह के साथी महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के जन्म दिन पर आज पटना के भारतीय नृत्य कला मंदिर में  इतिहासकारों, बुद्धिजीवियों, संस्कृतिकर्मियों व नागरिक समुदाय के आह्वान पर दो सालों तक चलने वाले आजादी के 75 साल: जन अभियान की शुरूआत हुई. इसके पूर्व आज सुबह में जक्कनपुर स्थित बटुकेश्वर दत्त लेन में एक सभा भी आयोजित की गई और विधानसभा मुख्य द्वार पर स्थित उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। 

आजादी के 75 सालों का लेखाजोखा भी पार्टी ने संक्षेप में बताया। पार्टी ने कहा सपने और चुनौतियां विषय पर आयोजित जनकन्वेंशन में मुख्य रूप से प्रख्यात इतिहासकार प्रो. ओपी जायसवाल, माले के महासचिव काॅ. दीपंकर भट्टाचार्य, जाने-माने कवि अरूण कमल, पटना विवि के इतिहास विभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. भारती एस. कुमार, एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट के प्रोफेसर विद्यार्थी विकास, पसमांदा महाज के नेता व पूर्व सांसद अली अनवर आदि वक्ताओं ने अपने विचार रखे. इस मौके पर एनआईटी के पूर्व शिक्षक प्रो. संतोष कुमार शिक्षाविद् गालिब, रंजीव, इंजीनियर पीएस महाराज, डाॅ. पीएनपीपाल, इप्टा के तनवीर अख्तर, माले के राज्य सचिव कुणाल, धीरेन्द्र झा, महबूब आलम, संतोष सहर, मीना तिवारी, संदीप सौरभ सहित कई लोग उपस्थित थे. मंच का संचालन कुमार परवेज ने किया. हिरावल के साथियों के अजीमुल्ला खां रचित ‘हम हैं इसके मालिक हिंदोस्ता हमारा’ गायन से जनकन्वेंशन की शुरूआत हुई। 

इस आयोजन की चर्चा करते हुए कहा,"आज महान क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त का जन्म दिवस है।  इस पावन अवसर पर मेरी, उनकी इकलौती बेटी, की ओर से आप सभी को, जो बटुकेश्वर दत्त और शहीद—ए—आजम भगत सिंह की धर्मनिरपेक्षता एवं गरीबों के उत्थान की सच्ची भावना से प्रेरित भाईचारा व बराबरी की विचारधारा पर चलने की प्रेरणा लेते हैं, को शुभकामनायें देती हूं। 

इंकलाब जिन्दाबाद! 

शारीरिक अक्षमता के कारण मैं यह संदेश 'वायस मैसेज' से देने में असमर्थ हूं जिसके लिए क्षमाप्रार्थी हूं।  

मेरे पिता क्रांतिकारी बटुकेश्वर दत्त के जन्मदिवस पर हो रहे आयोजन की सफलता की कामना करती हूं। 

बटुकेश्वर दत्त की बेटी भारती बागची का संदेश

इस मौके पर ओपी जायसवाल ने कहा कि भाजपा व संघ का आजादी के आंदोलन में विश्वासघात का इतिहास रहा है. वे संविधान के भी विरोधी हैं, क्योंकि यह धारा मानती है कि मनुस्मृति ही संविधान है. जब संविधान लागू हो रहा था और सबको वोट का अधिकार मिल रहा था, तब संघ के नेताओं ने उसका विरोध किया था. ये लोग आज इतिहास को विकृत कर रहे हैं. इसके खिलाफ एक व्यापक एकता बनाना और आजादी के 75 साल की मूल भावना को याद करना व उस संघर्ष को आगे बढ़ाना हम सबका दायित्व बनता है। 

कन्वेंशन में माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि बटुकेश्वर दत्त व सावरकर का नाम एक साथ नहीं लिया जा सकता. अंडमान की जेल में सावरकर का इतिहास माफी मांगने का है, जबकि बटुकेश्वर दत्त अनवरत जेल में लड़ते रहे. यह लड़ाई भाजपा के हर झूठ व इतिहास को लेकर उनके खेल के खिलाफ है. आजादी के आंदोलन के इतिहास से ऊर्जा लेकर हम आज की लड़ाई लड़ रहे हैं. हम 1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन, 1942 की क्रांति, देश में चले किसान आंदोलन, आजादी आंदोलन में मुस्लिमों की भागीदारी, दलितों-पिछड़ों, महिलाओं की भागीदारी आदि पहलूओं को हम याद कर रहे हैं। 

हमारे पूर्वजों ने लड़कर के अंग्रेजों को भगाया. उनके खून-पसीने से आजादी के आंदोलन के इतिहास का निर्माण हुआ है. यदि अगर संघर्ष नहीं हुआ होता तो इतिहास नहीं बनता. यह हमारी विरासत है, इसका रखरखाव, सबक लेना, कोई गलती हुई तो नहीं दुहराना, यह हम सबको करना है. इस इतिहास को हम संभालेंगे. भाजपा व संघ सत्ता के बल पर उस इतिहास को तोड़-मरोड़ देना चाहते हैं. इसलिए हमें आजादी के मूल्यों को बचाना भी है और ऐसी ताकतों के खिलाफ निर्णायक संघर्ष में भी उतरना है। 

अरूण कमल ने कहा कि भगत सिंह व उनके साथियों का संघर्ष,  नौसैनिक विद्रोह आदि हमारे आजादी के आंदोलन के मूल्यवान पहलू हैं .आज उस आाजदी को बचाने और उन्हें याद करने की जरूरत है. आजादी की लड़ाई कभी खत्म नहीं होगी. वह सांस की तरह है. हम सब मिकर चलेंगे और एक नया समाज बनायेंगे। 

विद्यार्थी विकास ने गांधी की जिंदगी बचाने वाले बत्तख मियां के कार्यों पर विस्तार से चर्चा की. उन्होंने कहा कि भाजपा-संघ के लोग गांधी को मारने वाले गोडसे की भक्ति करते हैं, हमारी विरासत बत्तख मियां की विरासत है, जिन्होंने गांधी को बचाया था. भारती एस कुमार ने कहा कि यह जनअभियान सच्चे इतिहास को लोगों के बीच ले जाने व समझने का एक बेहतर प्रयास है. मौजूदा सरकार उसे तोड़-मरोड़ रही है. इतिहास को तथ्यों पर आधारित होना चाहिए और इसके लिए हमें लड़ना होगा। 

अली अनवर ने आजादी के आंदोलन में हाशिये पर पड़े लोगों के इतिहास को सामने लाने के लिए अभियान की सराहना की. कहा कि संघ के लोग देश की जनता को जहर पिलाने का काम कर रहे हैं. प्रज्ञा सिंह ठाकुर व कंगना रनौत जैसे लोगों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, जिनके लिए आजादी एक भीख है. यह तमाम शहीदों का अपमान है। 

अंत में जनकन्वेंशन से कुछेक प्रस्ताव लिए गए. प्रो. ओपी जायसवाल की अध्यक्षता में अगले दो सालों तक इस जन अभियान को संचालित करने का निर्णय लिया गया. साथ ही, पटना में बटुकेश्वर दत्त के सम्मान में पटना स्थित सचिवालय हाॅल्ट रेलवे स्टेशन, मीठापुर-गर्दनीबाग रोड और गर्दनीबाग स्थित अंग्रेजों के जमाने के गेट पब्लिक लाइब्रेरी का नाम बटुकेश्वर दत्त के नाम पर किए जाने की मांग की गई. जनभागीदारी से गोरिया मठ के पास बटुकेश्वर दत्त द्वार का निर्माण करने का भी संकल्प लिया गया। 

प्रस्ताव में 1857, 1942, किसान आंदोलन, आदिवासी आंदोलन आदि के अनछुए पहलूओं का दस्तावेजीकरण का निर्णय किया गया और जिलों में कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय किया गया. कन्वेंशन ने अभिनेत्री कंगना रनौत से अविलंब पद्म श्री का पुरस्कार वापस लेने की भी मांग की। इस तरह बहुत सी यधारी बातों के बाद कार्यक्रम संपन्न हुआ। 

Friday, November 19, 2021

जनांदोलन अहंकारी और निरंकुश सत्ताओं को भी हरा सकते है

भाकपा(माले) के नेता दीपंकर भट्टाचार्य ने दी किसानों को बधाई 


नई दिल्ली
: 19 नवंबर 2021: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::

भाकपा माले ने कृषि कानूनों की वापसी को आंदोलन की जीत बताया है। पार्टी के महासचिव दिपांकर  भट्टाचार्य ने इस मकसद का बयान भी जारी किया है। इस संबंध में उन्होंने अपने अकाउंट से और साथ ही पार्टी के अकाउंट  से ट्वीट भी जारी किए। इस अवसर पर भाकपा मेल ने तेज़ी से प्रतिक्रिया व्यक्त की। 

प्रधानमंत्री की तरफ से इन कृषि कानूनों की वापसी पर कामरेड  भट्टाचार्य ने बधाई भी दी। कृषि क़ानूनों के बाद अन्य दमनकारी व विभेदकारी क़ानूनों की वापसी तथा लेबर कोड व परिसंपत्तियों की बिक्री जैसे कॉरपोरेट परस्त कदमों को निरस्त  करवाने के लिए कदम बढ़ाए जाएँ मोदी सरकार द्वारा थोपे गए काले कृषि क़ानूनों की वापसी के लिए साल भर चले किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष की जीत पर भाकपा (माले) किसानों को गर्मजोशी भरी बधाई देती है. इस जीत का स्पष्ट संदेश है कि जनांदोलनों की ताकत से बेहद अहंकारी और निरंकुश सत्ताओं को भी शिकस्त दी जा सकती है।  इसके साथ ही पार्टी ने अब अन्य मांगों को भी उठाना शुरू कर दिया है। इनमें सीएएए को हटवाना भी शामिल है। 

कृषि वापसी पर प्रधानमंत्री के इस ऐलान के ढंग भी पार्टी ने तीखी आलोचना की और इसे गरिमाविहीन बताया। पार्टी महासचिव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद गरिमाहीन तरीके से कृषि क़ानूनों की वापसी की घोषणा की। उन्होंने “राष्ट्र” से कृषि क़ानूनों को वापस लेने के लिए माफी मांगी. पर उन्होंने किसानों को देशद्रोही कहने और उन पर दमन ढाहने के लिए माफी नहीं मांगी। पिछले एक साल में भाजपा प्रायोजित पुलिस दमन और दिल्ली के बार्डरों की कठोर परिस्थितियों के चलते 700 से अधिक किसान प्राण गंवा बैठे। इस बात को ंतो इतिहास  प्रदर्षनकारी किसान। 

अपने आंदोलन और एकता के बल पर किसान कृषि क़ानूनों को पीछे धकेलने में कामयाब हो गए हैं। इसके साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य(एमएसपी), किसान नेताओं पर दर्ज झूठे मुकदमों की वापसी और आंदोलनकारी किसानों के विरुद्ध घृणा और हिंसा को उकसाने वाले मंत्री अजय मिश्रा जैसों के इस्तीफे के लिए उनका संघर्ष जारी रहेगा।  

इस लम्बे और सख्त संघर्ष के ज़रिए कृषि क़ानूनों को वापस करवाने में मिली इस जीत को, सीएए और यूएपीए जैसे दमनकारी, विभेदकारी क़ानूनों, लेबर कोड व सार्वजनिक परिसंपत्तियों की बिक्री जैसी  कॉरपोरेट परस्त नीतियों तथा भारत के संविधान व उसकी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व संघीय बुनियाद पर किए जा रहे हमलों के खिलाफ चल रहे संघर्षों को तेज करने के हौसले को दृढ़ करने के काम आना चाहिए। ज़हर है कि कृषि कानूनों के वापसी के बाद अब सीएए और यूएपीए के खिलाफ आंदोलन तेज़ होगा। कृषि कानूनों की वापसी से मिले जीत का जोश भी इस आंदोलन को और तेज़ करने में काम आएगा। 

+*दीपंकर भट्टाचार्य भाकपा(माले) के महासचिव 



Friday, November 12, 2021

एक करोड़ रुपयों के ईनाम वाले किशन दा गरिफ्तार

जंगलों में रह कर भी संचालित करते रहे माओवादी अभियान 

सारंडा वन जहां किशन दा कई बार अज्ञातवास में रहे 
रांची: 12 नवंबर 2021: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::

रांची से आ रही है बहुत बड़ी खबर। सुरक्षा बलों का हाथ नक्सली अभियान पर भरी बना हुआ है। एक शीर्ष नेता प्रशांत किशोर उर्फ़ किशन दा को उनकी पत्नी सहित गरिफ्तार कर लिया गया है। उनके दो और साथी भी ग्रिफ्तार किए गए हैं। इस तरह कुल चार लोग ग्रिफ्तार किए गए। प्रशांत बोस उर्फ़ किशन दा के कई और नाम भी थे। उन्हें ग्रिफ्तार करने की सक्रिय कोशिश चार दशकों से चल रही थी। पांच राज्यों की पुलिस उनके पीछे थी। 

माओवाद के खिलाफ दिनरात एक करके अभियान चला रहे सुरक्षा बलों को उस समय बहुत बड़ी सफलता मिली जब उन्होंने एक करोड़ रुपयों के इनाम वाले शीर्ष नक्सलवादी नेता को गरिफ्तार कर लिया। भाकपा माओवादियों के शीर्ष पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किशन दा, उनकी पत्नी शीला मरांडी समेत चार माओवादियों को झारखंड पुलिस ने शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया। प्रशांत बोस माओवादियों के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो का सचिव भी हैं। वहीं प्रशांत बोस की पत्नी शीला मरांडी भी माओवादियों की शीर्ष सेंट्रल कमेटी की सदस्य है। वह माओवादियों के फ्रंटल आर्गेनाइजेशन नारी मुक्ति संघ की प्रमुख भी है। बहुत से स्थानों पर पार्टी को खड़ा करने में बोस की भूमिका बहुत ही उल्लेखनीय रही। सरकारी नज़र से इस इनामी नक्सलवादी लीडर की अहमियत इसी बात से पता चल जाती है कि प्रशांत बोस पर झारखंड में 70 से अधिक माओवादी कांड दर्ज है।

प्रशांत को गरिफ्तार किए जाने का विस्तृत विवरण भी बहुत दिलचस्प है। झारखंड पुलिस के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय खुफिया एजेंसी आईबी ने प्रशांत बोस समेत अन्य के गिरिडीह के पारसनाथ से सरायकेला लौटने की जानकारी दी थी। इसके बाद सरायकेला पुलिस ने एक स्कार्पियो गाड़ी से प्रशांत बोस, शीला मरांडी, प्रशांत बोस के प्राटेक्शन दस्ता के एक सदस्य व कुरियर का काम करने वाले एक युवक को मुंडरी टोलनाका के पास से गिरफ्तार किया। गिरफ्तारी के बाद चारों माओवादियों को गुप्त स्थान पर रखकर पूछताछ की जा रही है। झारखंड पुलिस ने प्रशांत बोस पर एक करोड़ का ईनाम रखा हुआ है। इनाम की इतनी बड़ी राशि से ही पता चल जाता है कि पुलिस और अन्य सुरक्षा बल इसकी गरिफ्तारी के लिए कितने परेशान रहे होंगें। गौरतलब है कि प्रशांत बोस पर झारखंड में 70 से अधिक माओवादी कांड दर्ज है। शायद अन्य राज्यों की सरगर्मियां मिला कर यह लिस्ट और भी  लम्बी हो जाए।  

लम्बे समय से बीमारी का भी है प्रकोप कोलकाता जाकर करवाता था इलाजअज्ञातवास का जीवन आसान तो नहीं होता। इसके साथ ही उम्र भी काफी है। बहुत सी कठिनाइयां होती हैं इस सब से। छोटीमोटी कई बीमारियां लग जाती हैं जिनका इलाज आवश्यक हो जाता है। पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली है कि प्रशांत बोस की तबीयत बीते कई सालों से खराब थी। लेकिन इसके बावजूद वह लगातार अपने इस संगठन में सक्रिय रहा जिसके लिए वह हमेशां प्रतिबद्ध रहा। जानकारी के मुताबिक प्रशांत दा कोल्हान से पारसनाथ जाकर रह रहा था। पारसनाथ से ही वह प्रोटेक्शन दस्ता के सदस्यों के द्वारा एनएच 2 तक लाया जाता था। इसके बाद कुरियर के द्वारा ही प्रशांत बोस को कोलकाता ले जाया जाता था। हाल ही में प्रशांत बोस कोलकाता से लौटा था। इस तरह इलाज के लिए आने जाने के लिए भी सफर की जो प्रक्रिया अपने जाती वह कम दिलचस्प नहीं है। हर कदम पर सावधानी और सनसनी एक साथ चलते। माओवादी संगठन में इतने बड़े पद पर आसीन प्रशांत दा के लिए इतनी वशिष्ट किस्म की सुरक्षा व्यवस्था स्वाभाविक ही थी। उसका पद बेहद महत्वपूर्ण पद है। 

माओवादी संगठन एमसीसीआई का प्रमुख था प्रशांत बोस

माओवादी विचारधारा को समर्पित संगठनों में पद और ज़िम्मेदारी दोनों बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। माओवादी संगठनों में से कोई अज्ञातवास में चल रहा हो या खुले तौर पर सक्रिय हो दोनों ही तरह के संगठनों में पद, जिम्म्मेदारी और प्रस्ताव लागू करना अहम रहता है। जितना बड़ा पद उतनी ही बड़ी ज़िम्मेदारी। प्रशांत बोस के पास ईआरबी के सचिव के तौर पर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के झारखंड के सीमावर्ती इलाके, असम समेत पूर्वोतर के राज्यों का प्रभार था। साल 2004 में माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर आफ इंडिया (एमसीसीआई) और पीपुल्ज़ वार ग्रुप (पीडब्लूजी) के विलय के पूर्व वह एमसीसीआई का प्रमुख था। विलय के बाद भाकपा माओवादी संगठन में कोटेश्वर राव को प्रमुख बनाया गया था, जबकि बतौर ईआरबी सचिव तब से प्रशांत बोस संगठन में सेकेंड इन कमान था। झारखंड में पारसनाथ, सारंडा, ओड़िसा और बंगाल के सीमावर्ती इलाके में प्रशांत बोस ने ही संगठन को खड़ा किया था। प्रशांत बोस मूलत: पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के यादवपुर का रहने वाला है। पश्चिम बंगाल की पृष्ठभूमि होने के कारण सख्तियों भरी ज़िंदगी जीने के भी आदी बन गए थे प्रशांत दा। 

वृद्धावस्था में संभाले बैठे थे अनुभवों का खज़ाना 

नक्सलवाद और माओवाद के रास्ते पर चलते चलते हुए प्रशांत दा की उम्र तो बढ़ गई लेकिन साथ ही बढ़ गया अनुभवों का खज़ाना। थ्यूरी के साथ साथ प्रेक्टिस में भी बहुत से नए अनुभव मिले। इन नए अनुभवों से थ्यूरी और तीखी होती चली गई। विचारधारा के आधार की ज़मीन और परमार्जित होती रही। इन्हीं अनुभवों के चलते संगठन के नए यूनिट खड़े करने और मौजूदा यूनिटों को मज़बूत करने में उनको महारत हासल है। स्थानीय राजनीति, स्थानीय समस्याओं और स्थानीय हालात व् पर्यावरण के चलते इन अनुभवों से बहुत ही सहायता मिलती है। इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही नक्सली संगठन अपने नए एक्शन प्लान तैयार करते हैं। 

अज्ञातवास के जीवन में भी बहुत एक्सपर्ट भी रहे 

प्रशांत बोस उर्फ़ किशन दा अज्ञातवास की ज़िंदगी के बहुत ही अभ्यस्त रहे और इसमें निपुण भी हो गए ,जल्दी किए उनकी सरगर्मियां किसी की नज़र में न न आतीं। करीब पांच वर्ष पूर्व तो स्थिति यह बन गई थी उनके ज़िंदा होने का भी सरकार को कुछ पक्का पता नहीं था। उन दिनों उनके ही निकट एक सहयोगी को बयान देना पड़ा कि किशन दा ज़िंदा हैं और कमान उनके हाथ में है। ये भी खबर थी कि किशन दा जीवित नहीं है। मगर 25 लाख के इनामी नक्सली कमांडर कान्हू मुंडा ने खुलासा किया था कि किशन दा जिंदा हैं। वही नक्सलवाद की कमान संभाले हुए हैं। सबसे बड़ी बात तो यह वे बंगाल के जंगलों में नहीं, झारखंड के सारंडा जंगल से नक्सल गतिविधियां चला रहे हैं। झारखंड सरकार ने उस पर एक करोड़ का इनाम रखा है।

 किशन दा सारंडा सहित कई जगहों पर शरण लेते रहे

पांच सात वर्ष पूर्व के उस दौर में भी किशन दा पर ओड़िशा, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने भी इनाम घोषित कर रखा है।  किशन दा ने असीम मंडल उर्फ आकाश को कोल्हान समेत पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में संगठन मजबूत करने की जिम्मेवारी सौंपी है। उन दिनों में भी प्रशांत उर्फ़ किशन दा सारंडा सहित कई जगहों पर शरण लेते रहे। झारखंड  सारंडा के जंगल बहुत गहन जंगल हैं। सारंडा वन झारखंड-ओडिशा सीमा में फैला हुआ है, और यहाँ बड़ी संख्या में पशु, पक्षी और सरीसृप प्रजातियां पाई जाती हैं। 'सारंडा' शब्द का अर्थ है हाथियों और वन को इसका नाम बड़ी संख्या में यहाँ रहने वाले हाथियों के कारण मिलता है। जंगल दुनिया के उन कुछ स्थानों में से एक है, जहां लुप्तप्राय उड़ने वाली छिपकली रहती है। इस तरह यह एक महत्वपूर्ण स्थान है जो सैलानी स्थल ही है। सैलानी स्थल होने के कारण यहां अज्ञातवास के बावजूद जनसाधारण में से सिलेक्टिड लोगों से राब्ता बनाना आसान हो जाता है।