Wednesday, August 28, 2024

सीपीआईएमएल लिबरेशन का बटाला में राजनीतिक सम्मेलन

 बुधवार 28 अगस्त 2024 15:02 बजे

 पंजाब में राजनीतिक शून्य को भरने के लिए दिया 16 सूत्री कार्यक्रम 


बटाला
: 28 अगस्त 2024: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::

एक समय पंजाब में भी नक्सलबाड़ी आन्दोलन बड़े जोर-शोर से उठा था। बलिदानियों के इस आंदोलन ने न केवल एक नए राजनीतिक विकल्प के लिए एक नया इतिहास रचा बल्कि साहित्यिक क्षेत्र में भी बहुत कुछ नया आया जो इस आंदोलन की विचारधारा से प्रेरित था। कई लेखक, कई कवि, कई पत्रकार, कई मंच कलाकार और कई पत्रिकाएँ भी जनता के सामने आये। हालाँकि इनका छपा हुआ स्वरूप बहुत महँगा नहीं था, फिर भी इन पर्चों की माँग अधिक थी।

हेम ज्योति, सियाड़, रोहले बाण, मां, सरदल और कई अन्य पत्र पत्रिकाएं भी। इस आंदोलन को तब और गति मिली जब पंजाबी के प्रसिद्ध समाचारपत्र अजीत अखबार के वर्तमान संपादक और तत्कालीन पत्रिका दृष्टि के संस्थापक संपादक और प्रकाशक सरदार बरजिंदर सिंह हमदर्द ने नक्सलबाड़ी संघर्ष में शहीद हुए नक्सलबाड़ी कार्यकर्ताओं और नेताओं की एक लंबी सूची प्रकाशित की। इस पत्रिका की इस विशेष सामग्री से जहां नक्सली विचारधारा और खुल कर सामने आई, वहीं इस पंजाबी पत्रिका के पाठकों का दायरा भी तेज़ी से बढ़ा।

जब स्थिति बदली तो नक्सलियों के अधिकांश गुट सशस्त्र संघर्ष से वैचारिक संघर्ष की ओर लौट गये। उधर, पंजाब में भी सरकार ने पूरी ताकत से इस आंदोलन को दबाने और कुचलने में कोई कसर नहीं थी छोड़ी। पंजाबी के जानेमाने लेखक जनाब जसवन्त सिंह कंवल का उपन्यास "लहू दी लो" महज़ एक कहानी या कल्पना नहीं थी। उपन्यास एक दस्तावेज़ी की तरह ही था। यह उपन्यास आज भी बड़े चाव से पढ़ा जाता है। आंदोलन ख़त्म होने के बाद भी इस साहित्य की चर्चा होती है। 

नक्सली आंदोलन ख़त्म होने की हकीकत के बावजूद अंदर ही अंदर चिंगारी सुलगती रही। सरकार के दमन के बाद भी इस आंदोलन में पुनर्जन्म की चर्चा और प्रयास कुकनूस की तरह जारी रहे। दमन के दावों के बाद वास्तव में आंदोलन को कई स्थानों और रूपों में विलीन होने का भी अवसर मिला। इसका अदृश्य रूप काफी समय तक लोगों को महसूस होता रहा। जो लोग सरकारी नौकरियों या अन्य मजबूरियों के कारण इस आंदोलन में खुलकर सामने नहीं आ सके, उनका मलाल भी उनकी रचनाओं में सामने आता रहा। आकाशवाणी जालंधर के वरिष्ठ अधिकारी एस एस मीशा ने लिखा:

लहरां सदिया सी सानूं वि इशारियां दे नाल! साथों मोह तोड़ होइया न किनारियां दे नाल!

धीरे धीरे कई लोगों का वो मोह-प्यार भी टूटा और उनमें नई हिम्मत भी आई। लोगों को यह एहसास भी होने लगा था कि संघर्ष के बिना कोई विकल्प नहीं बचा है। इस तरह की भावनाओं ने कई लोगों को नक्सलबाड़ी आंदोलन के नये रंग की ओर भी आकर्षित किया। विवादों और विरोधों के बावजूद सीपीआईएमएल लिबरेशन ने एक नया इतिहास रचा। जो नक्सली कार्यकर्ता अपने घरों में निराशा में बैठे हुए थे, उन्हें प्रोत्साहित किया गया और उन्हें उनके घरों से निकालकर फिर से युद्ध के मैदान में लाया गया। इस पार्टी ने देश के अन्य राज्यों की तरह पंजाब में भी कई सफल सम्मेलन किये। इन सम्मेलनों में पंजाब के मुद्दे भी ज़ोरदार तरीके से उठाए गए। 

सीपीआईएमएल लिबरेशन का राजनीतिक सम्मेलन आज फैज पुरा रोड लिबरेशन कार्यालय में आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता दलबीर भोला मलकवाल, रमनदीप पिंडी और बचन सिंह मचानिया ने संयुक्त रूप से की। इस समय बोलते हुए लिबरेशन के जिला सचिव गुलजार सिंह भुम्बली, सुखदेव सिंह भागोकावां और लिबरेशन के राज्य सचिव कामरेड गुरमीत सिंह बखतपुरा ने कहा कि पंजाब में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो रही है, लूटपाट, जबरन वसूली, ड्रग्स, रेत माफिया और भूमि माफिया का बोलबाला है सामान्य वाक्पटुता. शिक्षण संस्थानों और स्वास्थ्य संस्थानों में शिक्षकों और डॉक्टरों की सीटें नहीं भर पा रही हैं.

लिबरेशन के वरिष्ठ नेता बखतपुरा ने कहा कि पंजाब में राजनीतिक शून्यता है, जिसे भरने के लिए लिबरेशन ने 16 सूत्रीय कार्यक्रम निर्धारित किया है, जिसमें रोजगार दिलाने और रोजगार को बुनियादी अधिकारों में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा। मनरेगा में रोजगार 200 दिन और दैनिक मजदूरी 700 रुपये करना, किसानों के जीन्स के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी बनाना, व्यापार के लिए वाघा बॉर्डर को खोलना, करतारपुर साहिब जाने के लिए पासपोर्ट की शर्त को हटाना, भ्रष्टाचार को खत्म करना, 12 घंटे की दैनिक मजदूरी लाना जैसे सवाल हैं कानून को वापस लेने, पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ और पंजाब के पंजाबी भाषी क्षेत्रों सहित पंजाब के राजनीतिक मुद्दों को नदी तटीय सिद्धांतों पर हल करने का मुद्दा पुरजोर तरीके से उठाया जाएगा।

इस प्रकार निकट भविष्य में आने वाला समय तीव्र संघर्षों की दस्तक दे रहा है। वाम दलों द्वारा उठाए गए मुद्दों के साथ-साथ पंजाब और पंथक दलों के मुद्दे भी शामिल होंगे जिन्हें कई सिख संगठन और पंथक पार्टियों ने भी काफी हद तक भुला दिया है। चंडीगढ़ और पंजाबी भाषी इलाकों को पंजाब में जोड़ने का नारा फिर से उठता दिख रहा है। 

इस समय दीपो बदोवाल खुर्द, काजल बदोवाल खुर्द, बचन सिंह तेजा, बूटा तलवंडी नाहर और हरप्रीत बदोवाल खुर्द, बंटी रोरा पिंडी और पिंटा तलवंडी भारथ शामिल थे।

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