जंगलों में रह कर भी संचालित करते रहे माओवादी अभियान
सारंडा वन जहां किशन दा कई बार अज्ञातवास में रहे |
माओवाद के खिलाफ दिनरात एक करके अभियान चला रहे सुरक्षा बलों को उस समय बहुत बड़ी सफलता मिली जब उन्होंने एक करोड़ रुपयों के इनाम वाले शीर्ष नक्सलवादी नेता को गरिफ्तार कर लिया। भाकपा माओवादियों के शीर्ष पोलित ब्यूरो के सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किशन दा, उनकी पत्नी शीला मरांडी समेत चार माओवादियों को झारखंड पुलिस ने शुक्रवार को गिरफ्तार कर लिया। प्रशांत बोस माओवादियों के ईस्टर्न रीजनल ब्यूरो का सचिव भी हैं। वहीं प्रशांत बोस की पत्नी शीला मरांडी भी माओवादियों की शीर्ष सेंट्रल कमेटी की सदस्य है। वह माओवादियों के फ्रंटल आर्गेनाइजेशन नारी मुक्ति संघ की प्रमुख भी है। बहुत से स्थानों पर पार्टी को खड़ा करने में बोस की भूमिका बहुत ही उल्लेखनीय रही। सरकारी नज़र से इस इनामी नक्सलवादी लीडर की अहमियत इसी बात से पता चल जाती है कि प्रशांत बोस पर झारखंड में 70 से अधिक माओवादी कांड दर्ज है।
लम्बे समय से बीमारी का भी है प्रकोप कोलकाता जाकर करवाता था इलाजअज्ञातवास का जीवन आसान तो नहीं होता। इसके साथ ही उम्र भी काफी है। बहुत सी कठिनाइयां होती हैं इस सब से। छोटीमोटी कई बीमारियां लग जाती हैं जिनका इलाज आवश्यक हो जाता है। पूछताछ में पुलिस को जानकारी मिली है कि प्रशांत बोस की तबीयत बीते कई सालों से खराब थी। लेकिन इसके बावजूद वह लगातार अपने इस संगठन में सक्रिय रहा जिसके लिए वह हमेशां प्रतिबद्ध रहा। जानकारी के मुताबिक प्रशांत दा कोल्हान से पारसनाथ जाकर रह रहा था। पारसनाथ से ही वह प्रोटेक्शन दस्ता के सदस्यों के द्वारा एनएच 2 तक लाया जाता था। इसके बाद कुरियर के द्वारा ही प्रशांत बोस को कोलकाता ले जाया जाता था। हाल ही में प्रशांत बोस कोलकाता से लौटा था। इस तरह इलाज के लिए आने जाने के लिए भी सफर की जो प्रक्रिया अपने जाती वह कम दिलचस्प नहीं है। हर कदम पर सावधानी और सनसनी एक साथ चलते। माओवादी संगठन में इतने बड़े पद पर आसीन प्रशांत दा के लिए इतनी वशिष्ट किस्म की सुरक्षा व्यवस्था स्वाभाविक ही थी। उसका पद बेहद महत्वपूर्ण पद है।
माओवादी संगठन एमसीसीआई का प्रमुख था प्रशांत बोस
माओवादी विचारधारा को समर्पित संगठनों में पद और ज़िम्मेदारी दोनों बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। माओवादी संगठनों में से कोई अज्ञातवास में चल रहा हो या खुले तौर पर सक्रिय हो दोनों ही तरह के संगठनों में पद, जिम्म्मेदारी और प्रस्ताव लागू करना अहम रहता है। जितना बड़ा पद उतनी ही बड़ी ज़िम्मेदारी। प्रशांत बोस के पास ईआरबी के सचिव के तौर पर बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ के झारखंड के सीमावर्ती इलाके, असम समेत पूर्वोतर के राज्यों का प्रभार था। साल 2004 में माओइस्ट कम्युनिस्ट सेंटर आफ इंडिया (एमसीसीआई) और पीपुल्ज़ वार ग्रुप (पीडब्लूजी) के विलय के पूर्व वह एमसीसीआई का प्रमुख था। विलय के बाद भाकपा माओवादी संगठन में कोटेश्वर राव को प्रमुख बनाया गया था, जबकि बतौर ईआरबी सचिव तब से प्रशांत बोस संगठन में सेकेंड इन कमान था। झारखंड में पारसनाथ, सारंडा, ओड़िसा और बंगाल के सीमावर्ती इलाके में प्रशांत बोस ने ही संगठन को खड़ा किया था। प्रशांत बोस मूलत: पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले के यादवपुर का रहने वाला है। पश्चिम बंगाल की पृष्ठभूमि होने के कारण सख्तियों भरी ज़िंदगी जीने के भी आदी बन गए थे प्रशांत दा।
वृद्धावस्था में संभाले बैठे थे अनुभवों का खज़ाना
नक्सलवाद और माओवाद के रास्ते पर चलते चलते हुए प्रशांत दा की उम्र तो बढ़ गई लेकिन साथ ही बढ़ गया अनुभवों का खज़ाना। थ्यूरी के साथ साथ प्रेक्टिस में भी बहुत से नए अनुभव मिले। इन नए अनुभवों से थ्यूरी और तीखी होती चली गई। विचारधारा के आधार की ज़मीन और परमार्जित होती रही। इन्हीं अनुभवों के चलते संगठन के नए यूनिट खड़े करने और मौजूदा यूनिटों को मज़बूत करने में उनको महारत हासल है। स्थानीय राजनीति, स्थानीय समस्याओं और स्थानीय हालात व् पर्यावरण के चलते इन अनुभवों से बहुत ही सहायता मिलती है। इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही नक्सली संगठन अपने नए एक्शन प्लान तैयार करते हैं।
अज्ञातवास के जीवन में भी बहुत एक्सपर्ट भी रहे
प्रशांत बोस उर्फ़ किशन दा अज्ञातवास की ज़िंदगी के बहुत ही अभ्यस्त रहे और इसमें निपुण भी हो गए ,जल्दी किए उनकी सरगर्मियां किसी की नज़र में न न आतीं। करीब पांच वर्ष पूर्व तो स्थिति यह बन गई थी उनके ज़िंदा होने का भी सरकार को कुछ पक्का पता नहीं था। उन दिनों उनके ही निकट एक सहयोगी को बयान देना पड़ा कि किशन दा ज़िंदा हैं और कमान उनके हाथ में है। ये भी खबर थी कि किशन दा जीवित नहीं है। मगर 25 लाख के इनामी नक्सली कमांडर कान्हू मुंडा ने खुलासा किया था कि किशन दा जिंदा हैं। वही नक्सलवाद की कमान संभाले हुए हैं। सबसे बड़ी बात तो यह वे बंगाल के जंगलों में नहीं, झारखंड के सारंडा जंगल से नक्सल गतिविधियां चला रहे हैं। झारखंड सरकार ने उस पर एक करोड़ का इनाम रखा है।
किशन दा सारंडा सहित कई जगहों पर शरण लेते रहे
पांच सात वर्ष पूर्व के उस दौर में भी किशन दा पर ओड़िशा, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र सरकार ने भी इनाम घोषित कर रखा है। किशन दा ने असीम मंडल उर्फ आकाश को कोल्हान समेत पश्चिम बंगाल और ओड़िशा में संगठन मजबूत करने की जिम्मेवारी सौंपी है। उन दिनों में भी प्रशांत उर्फ़ किशन दा सारंडा सहित कई जगहों पर शरण लेते रहे। झारखंड सारंडा के जंगल बहुत गहन जंगल हैं। सारंडा वन झारखंड-ओडिशा सीमा में फैला हुआ है, और यहाँ बड़ी संख्या में पशु, पक्षी और सरीसृप प्रजातियां पाई जाती हैं। 'सारंडा' शब्द का अर्थ है हाथियों और वन को इसका नाम बड़ी संख्या में यहाँ रहने वाले हाथियों के कारण मिलता है। जंगल दुनिया के उन कुछ स्थानों में से एक है, जहां लुप्तप्राय उड़ने वाली छिपकली रहती है। इस तरह यह एक महत्वपूर्ण स्थान है जो सैलानी स्थल ही है। सैलानी स्थल होने के कारण यहां अज्ञातवास के बावजूद जनसाधारण में से सिलेक्टिड लोगों से राब्ता बनाना आसान हो जाता है।
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