Sunday, September 8, 2024

31 मार्च 2026 तक देश नक्सलवाद से मुक्त होगा: अमित शाह

बस्तर क्षेत्र में 4,000 से अधिक कर्मियों की चार नई बटालियन तैनात

नई दिल्ली: 8 सितंबर 2024: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन डेस्क)::


केंद्र सरकार एक बार फिर नए जोश और नई रणनीति के तहत नक्सलवाद के पूर्ण उन्मूलन के लिए नया अभियान शुरू करने की तैयारी में है। इस नई नीति के अंतर्गत अब झारखंड से तीन और बिहार से एक बटालियन हटाकर बस्तर में तैनात की जा रही है। इससे सर्कार का दबाव नक्सलवादियों पर बढ़ने की संभावना है। 


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि देश को 31 मार्च 2026 तक पूरी तरह से नक्सलवाद मुक्त करने का लक्ष्य है। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में 4,000 से अधिक कर्मियों की चार नई बटालियन तैनात कर रहा है। शाह के अनुसार, नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई अब अपने अंतिम चरण में है और इसके पूर्ण खात्मे के लिए निर्णायक कार्रवाई की जा रही है।

नक्सलियों के खिलाफ सुरक्षा बलों की इस कड़ी कार्रवाई से  केंद्र सरकार नक्सली संगठनों को कमज़ोर कर पाने में कितनी सफल रहेगी इसकी उम्मीद काफी की जा रही है। गौरतलब है कि सुरक्षा बलों ने इस वर्ष नक्सलियों के खिलाफ बड़ी सफलताएं हासिल की हैं। मुठभेड़ों में अब तक 153 नक्सली मारे जा चुके हैं। सीआरपीएफ की 40 बटालियन पहले से ही छत्तीसगढ़ में तैनात हैं, जिनमें कोबरा इकाइयाँ भी शामिल हैं। अब झारखंड और बिहार में नक्सली गतिविधियों के नियंत्रण के बाद वहां से चार बटालियन हटाकर छत्तीसगढ़ के सबसे अधिक प्रभावित बस्तर क्षेत्र में भेजी जा रही हैं।

अतीत के प्रयोगों से प्रेरित हो कर अब बस्तर में नक्सल विरोधी अभियानों की मजबूत तैयारी का एक नया स्क्रिप्ट लिख लिया गया है। सीआरपीएफ की नई बटालियनों की तैनाती रायपुर से 450-500 किलोमीटर दूर बस्तर के दुर्गम इलाकों में की जाएगी। बल इन क्षेत्रों में फारवर्ड ऑपरेटिंग बेस (एफओबी) स्थापित करेगा, ताकि सुरक्षा सुनिश्चित होने के बाद विकास कार्यों की शुरुआत की जा सके। छत्तीसगढ़ में पिछले तीन वर्षों में 40 एफओबी स्थापित किए गए हैं, जो नक्सल विरोधी अभियानों को मजबूत करते हैं।

इस अभियान की सफलता के लिए जहां फ़ोर्स की ज़रूरत थी वहीँ तकनीकी तौर भी बहुत कुछ चाहिए था। प्रौद्योगिकी और संसाधनों की आवश्यकता लगातार महसूस की जाती रही है। 
सीआरपीएफ के अधिकारियों का मानना है कि दक्षिण बस्तर में अभियानों के लिए लगातार तकनीकी और संसाधनों की आवश्यकता होगी। यहां नक्सलियों द्वारा घात लगाकर हमले और विस्फोटक उपकरणों का खतरा बना रहता है, इसलिए बल को हेलीकॉप्टर और अन्य संसाधनों से सुदृढ़ किया जा रहा है। नई बटालियनों की तैनाती का उद्देश्य बस्तर के 'नो-गो' क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करना और तय समय सीमा के भीतर नक्सलवाद को समाप्त करना है।

निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सरकार इस मामले में पूरी तरह से आश्वस्त है। सरकार और सुरक्षा बलों का नक्सलवाद के खिलाफ यह निर्णायक कदम दर्शाता है कि देश नक्सलवाद के खात्मे की ओर तेजी से बढ़ रहा है। अमित शाह की प्रतिबद्धता और सीआरपीएफ की रणनीति इस दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। 

अब देखना है कि इस नए अभियान के नतीजे कितनी जल्दी सामने। 

Wednesday, August 28, 2024

सीपीआईएमएल लिबरेशन का बटाला में राजनीतिक सम्मेलन

 बुधवार 28 अगस्त 2024 15:02 बजे

 पंजाब में राजनीतिक शून्य को भरने के लिए दिया 16 सूत्री कार्यक्रम 


बटाला
: 28 अगस्त 2024: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::

एक समय पंजाब में भी नक्सलबाड़ी आन्दोलन बड़े जोर-शोर से उठा था। बलिदानियों के इस आंदोलन ने न केवल एक नए राजनीतिक विकल्प के लिए एक नया इतिहास रचा बल्कि साहित्यिक क्षेत्र में भी बहुत कुछ नया आया जो इस आंदोलन की विचारधारा से प्रेरित था। कई लेखक, कई कवि, कई पत्रकार, कई मंच कलाकार और कई पत्रिकाएँ भी जनता के सामने आये। हालाँकि इनका छपा हुआ स्वरूप बहुत महँगा नहीं था, फिर भी इन पर्चों की माँग अधिक थी।

हेम ज्योति, सियाड़, रोहले बाण, मां, सरदल और कई अन्य पत्र पत्रिकाएं भी। इस आंदोलन को तब और गति मिली जब पंजाबी के प्रसिद्ध समाचारपत्र अजीत अखबार के वर्तमान संपादक और तत्कालीन पत्रिका दृष्टि के संस्थापक संपादक और प्रकाशक सरदार बरजिंदर सिंह हमदर्द ने नक्सलबाड़ी संघर्ष में शहीद हुए नक्सलबाड़ी कार्यकर्ताओं और नेताओं की एक लंबी सूची प्रकाशित की। इस पत्रिका की इस विशेष सामग्री से जहां नक्सली विचारधारा और खुल कर सामने आई, वहीं इस पंजाबी पत्रिका के पाठकों का दायरा भी तेज़ी से बढ़ा।

जब स्थिति बदली तो नक्सलियों के अधिकांश गुट सशस्त्र संघर्ष से वैचारिक संघर्ष की ओर लौट गये। उधर, पंजाब में भी सरकार ने पूरी ताकत से इस आंदोलन को दबाने और कुचलने में कोई कसर नहीं थी छोड़ी। पंजाबी के जानेमाने लेखक जनाब जसवन्त सिंह कंवल का उपन्यास "लहू दी लो" महज़ एक कहानी या कल्पना नहीं थी। उपन्यास एक दस्तावेज़ी की तरह ही था। यह उपन्यास आज भी बड़े चाव से पढ़ा जाता है। आंदोलन ख़त्म होने के बाद भी इस साहित्य की चर्चा होती है। 

नक्सली आंदोलन ख़त्म होने की हकीकत के बावजूद अंदर ही अंदर चिंगारी सुलगती रही। सरकार के दमन के बाद भी इस आंदोलन में पुनर्जन्म की चर्चा और प्रयास कुकनूस की तरह जारी रहे। दमन के दावों के बाद वास्तव में आंदोलन को कई स्थानों और रूपों में विलीन होने का भी अवसर मिला। इसका अदृश्य रूप काफी समय तक लोगों को महसूस होता रहा। जो लोग सरकारी नौकरियों या अन्य मजबूरियों के कारण इस आंदोलन में खुलकर सामने नहीं आ सके, उनका मलाल भी उनकी रचनाओं में सामने आता रहा। आकाशवाणी जालंधर के वरिष्ठ अधिकारी एस एस मीशा ने लिखा:

लहरां सदिया सी सानूं वि इशारियां दे नाल! साथों मोह तोड़ होइया न किनारियां दे नाल!

धीरे धीरे कई लोगों का वो मोह-प्यार भी टूटा और उनमें नई हिम्मत भी आई। लोगों को यह एहसास भी होने लगा था कि संघर्ष के बिना कोई विकल्प नहीं बचा है। इस तरह की भावनाओं ने कई लोगों को नक्सलबाड़ी आंदोलन के नये रंग की ओर भी आकर्षित किया। विवादों और विरोधों के बावजूद सीपीआईएमएल लिबरेशन ने एक नया इतिहास रचा। जो नक्सली कार्यकर्ता अपने घरों में निराशा में बैठे हुए थे, उन्हें प्रोत्साहित किया गया और उन्हें उनके घरों से निकालकर फिर से युद्ध के मैदान में लाया गया। इस पार्टी ने देश के अन्य राज्यों की तरह पंजाब में भी कई सफल सम्मेलन किये। इन सम्मेलनों में पंजाब के मुद्दे भी ज़ोरदार तरीके से उठाए गए। 

सीपीआईएमएल लिबरेशन का राजनीतिक सम्मेलन आज फैज पुरा रोड लिबरेशन कार्यालय में आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता दलबीर भोला मलकवाल, रमनदीप पिंडी और बचन सिंह मचानिया ने संयुक्त रूप से की। इस समय बोलते हुए लिबरेशन के जिला सचिव गुलजार सिंह भुम्बली, सुखदेव सिंह भागोकावां और लिबरेशन के राज्य सचिव कामरेड गुरमीत सिंह बखतपुरा ने कहा कि पंजाब में कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो रही है, लूटपाट, जबरन वसूली, ड्रग्स, रेत माफिया और भूमि माफिया का बोलबाला है सामान्य वाक्पटुता. शिक्षण संस्थानों और स्वास्थ्य संस्थानों में शिक्षकों और डॉक्टरों की सीटें नहीं भर पा रही हैं.

लिबरेशन के वरिष्ठ नेता बखतपुरा ने कहा कि पंजाब में राजनीतिक शून्यता है, जिसे भरने के लिए लिबरेशन ने 16 सूत्रीय कार्यक्रम निर्धारित किया है, जिसमें रोजगार दिलाने और रोजगार को बुनियादी अधिकारों में शामिल करने का प्रयास किया जाएगा। मनरेगा में रोजगार 200 दिन और दैनिक मजदूरी 700 रुपये करना, किसानों के जीन्स के न्यूनतम समर्थन मूल्य को कानूनी बनाना, व्यापार के लिए वाघा बॉर्डर को खोलना, करतारपुर साहिब जाने के लिए पासपोर्ट की शर्त को हटाना, भ्रष्टाचार को खत्म करना, 12 घंटे की दैनिक मजदूरी लाना जैसे सवाल हैं कानून को वापस लेने, पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ और पंजाब के पंजाबी भाषी क्षेत्रों सहित पंजाब के राजनीतिक मुद्दों को नदी तटीय सिद्धांतों पर हल करने का मुद्दा पुरजोर तरीके से उठाया जाएगा।

इस प्रकार निकट भविष्य में आने वाला समय तीव्र संघर्षों की दस्तक दे रहा है। वाम दलों द्वारा उठाए गए मुद्दों के साथ-साथ पंजाब और पंथक दलों के मुद्दे भी शामिल होंगे जिन्हें कई सिख संगठन और पंथक पार्टियों ने भी काफी हद तक भुला दिया है। चंडीगढ़ और पंजाबी भाषी इलाकों को पंजाब में जोड़ने का नारा फिर से उठता दिख रहा है। 

इस समय दीपो बदोवाल खुर्द, काजल बदोवाल खुर्द, बचन सिंह तेजा, बूटा तलवंडी नाहर और हरप्रीत बदोवाल खुर्द, बंटी रोरा पिंडी और पिंटा तलवंडी भारथ शामिल थे।

Saturday, August 12, 2023

बरनाला (पंजाब) में लाल झंडे लिए सड़क पर उतरे हजारों मजदूर

महिला शक्ति ने भी दिखाया पूरा जोशो खरोश 


बरनाला
: 12 अगस्त 2023: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन डेस्क)::

बहुत तरह के कानूनों की सख्ती और बहुत से अलग अलग नामों की फोर्सें होने के बावजूद पंजाब के उन लोगों को डराया धमकाया नहीं जा सका जो घरों से निकल पड़े हैं। उनका संकल्प ज़रा भी कमज़ोर नहीं हुआ। वे उसी पुरानी शक्ति और जोश को साबित करते हुए फिर से सड़कों पर निकल पड़ते हैं। उनके नारों की बुलंद आवाज़ दूर तक पहुँचती है और उनके नारे लगाते हुए हाथ पूरे जोश के साथ खड़े होते हैं। बरनाला, मनसा, बठिंडा अब भी जान सहक्ति के ग्रह हैं यह कई कई बार साबित हो चुका है। 

सत्ता के मद में चूर हुई मोदी सरकार को जगाने के लिए जनता एक बार फिर से दृढ़ है। केंद्र की मोदी सरकार को महिला, दलित, अल्पसंख्यक विरोधी बताते हुए और पंजाब की मान सरकार का बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास, नशा रोकने, महिलाओं व मजदूरों से किए वायदे में विफल रहने के खिलाफ विगत 11 अगस्त 2023 को हजारों मजदूरों व महिलाओं ने बरनाला की सड़कों पर विरोध मार्च किया. भाकपा (माले) और मजदूर मुक्ति मोर्चा, पंजाब के संयुक्त आह्वान पर बरनाला जिला मुख्यालय पहुंचे हजारों कामकाजी पुरुषों और महिलाओं ने जुझारू मार्च किया और डिप्टी कमिश्नर कार्यालय पर रैली की. बाद में मुख्यमंत्री के नाम एक मांग पत्र दिया गया. इस विरोध मार्च से पूर्व पिछले 20 दिनों से बरनाला जिले के लगभग 100 गांवों में मजदूरों-महिलाओं की बैठकें/नुक्कड़ सभाएं आयोजित की गईं।  दिलचस्प बात है कि इन सभाओं में इस बार भी पूरा जोश देखा गया। 

भाकपा माले का बढ़ता हुआ कद एक बार फिर से देखा जा सकता है। इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए भाकपा (माले) के राज्य नेता और मजदूर मुक्ति मोर्चा, पंजाब के महासचिव गुरप्रीत सिंह रूडके ने कहा कि केंद्र और राज्यों में मौजूद भाजपा सरकारें महिलाओं की इज्जत व सम्मान पर हो रहे हमलों को रोकने में बुरी साबित हुई हैं। मणिपुर और हरियाणा में अल्पसंख्यकों व महिलाओं के हितों की रक्षा करने में वे न केवल विफल रहे हैं, बल्कि हमलावरों व यौन उत्पीड़नकारियों के साथ निर्लज्जता के साथ खड़े नजर आ रहे हैं। 

 ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ व ‘सबका साथ और सबका विकास’ का नारा देकर सत्ता में आई मोदी सरकार के संरक्षण में आज महिलाओं व अल्पसंख्यकों को भगवा गुंडा ब्रिगेड द्वारा निशाना बनाया जा रहा है. मोदी राज में आज पूरे देश में दलितों और हाशिए पर रहने वाले लोगों पर अत्याचार हो रहा है. भाजपा हमेशा उत्पीड़कों के पक्ष में खड़ी रही है। 

मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष कामरेड विजय भीखी ने कहा कि मान सरकार पंजाब के बाढ़ पीड़ितों के लिए नाम मात्र का मुआवजा देकर उनकी पीड़ा का मजाक उड़ा रही है. मुख्यमंत्री भगवंत मान और उनकी सरकार बाढ़ से तबाह भूमिहीन मजदूरों के घरों का पुनर्निर्माण करने में बुरी तरह विफल रही है. पंजाब के मजदूर व किसान अभी भी बाढ़ के विनाश का दर्द झेल रहे हैं। 

अखिल भारतीय प्रगतिशील महिला एसोसिएशन की नेता इकबाल कौर उदासी ने कहा कि मान सरकार ने पंजाब की महिलाओं को एक हजार रुपये प्रतिमाह देने का वादा 16 महीने बाद भी लागू नहीं किया गया है. मजदूर मुक्ति मोर्चा पंजाब की बरनाला जिला अध्यक्ष कामरेड सिंदर कौर हरिगढ़ ने कहा कि मनरेगा कानून अभी भी पिछली सरकारों की तरह सत्तारूढ़ दल और नौकरशाही की दया पर चल रहा है. मजदूरों को अब भी कम से कम समय पर भुगतान नहीं हो रहा है. 100 दिन के रोजगार और की गई मजदूरी का भुगतान मजदूरों के लिए अब भी दूर की कौड़ी बना हुआ है। 

इस मौके पर मनरेगा मजदूरों के लिए 200 दिन का काम, प्रतिदिन 700 रुपये मजदूरी और प्रति दिन छह घंटे काम का कानून बनाए जाने की मांग की गई. 5 लाख रुपये मकान निर्माण, मरम्मत के लिए 3 लाख रुपये और बेरोजगार श्रमिकों को 20,000 रुपये सहायता देने की मांग की गई. नशे के काले कारोबार और उनके साथ मिले नेताओं और पुलिस पर कठोर कानूनी कार्यवाही की मांग जोरदार ढंग से उठायी गई. नशा कारोबारियों से मिले नेताओं-अधिकारियों की संपत्तियों को जब्त करने की मांग भी उठाई गई। 

इस अवसर पर नशा विरोधी आंदोलन के कार्यकर्ता परविंदर झोटे की बिना शर्त रिहाई का भी प्रस्ताव पारित किया गया और जनता के अधिकारों के संघर्ष को तेज और व्यापक बनाने का आह्वान किया गया.

सभा को पंजाब जम्हूरी मोर्चा के प्रदेश संयोजक साथी जगराज सिंह टल्लेवाल, मजदूर मुक्ति मोर्चा पंजाब के जिला सचिव कामरेड स्वर्ण सिंह जंगियाना, हरचरण सिंह रूड़ेके, करनैल सिंह लखरीवाला, जग्गा सिंह संघेरा, युवा नेता हरमनदीप सिंह हिम्मतपुरा, राजिंदर कौर भट्टल, ज्ञान सिंह सोहियां, हैप्पी सिंह ब्राउन, सुखदेव सिंह महजूके, बूटा सिंह ढोला आदि ने संबोधित किया। 

Saturday, February 18, 2023

2024 में लोकतंत्र की निर्णायक जीत का मार्ग प्रशस्त हो रहा है

 Friday 17th February 2023 at 08:37 PM

कामरेड दीपंकर द्वारा भाकपा (माले) की 11वीं कांग्रेस के उद्घाटन सत्र में संबोधन


भाकपा (माले) की 10वीं कांग्रेस मार्च 2018 में पंजाब के मानसा में हुई थी। इस सम्मेलन ने और इसके बाद भी पंजाब में हुए आयोजनों ने पंजाब और आसपास के क्षेत्रों में भाकपा (माले) लिबरेशन के आधार को और मज़बूत करने में सक्रिय भूमिका निभाई थी। पंजाब के जो लोग अपने अपने दलों से निराश हुए बैठे थे उनको भाकपा (माले) लिबरेशन ने काफी हद तक आकर्षित किया। बा पार्टी का 11वां  महासम्मेलन श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की जन्मभूमि पटना पर जारी है। यहां प्रस्तुत है  महासचिव कामरेड दीपांकर भट्टाचार्य के सम्बोधन का मूल भाषण। 

पटना (बिहार): 17 फरवरी 2023: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन डेस्क)::

कॉमरेड अध्यक्ष, प्रतिनिधि और पर्यवेक्षक साथियो, भारत के विभिन्न वामपंथी दलों के नेतागण, विदेश से आए बिरादराना संगठनों के नेता, मीडिया के मित्र और यहां एकत्रित पटना के प्रबुद्ध नागरिक बन्‍धुओ!

भाकपा (माले) की 11वीं कांग्रेस में आप सभी का स्वागत करते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है। 27 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस कांग्रेस में भाग लेने वाले सत्रह सौ से अधिक प्रतिनिधियों और पर्यवेक्षकों के साथ, यह हमारी पार्टी के इतिहास की सबसे बड़ा महाधिवेशन है। हमने अपने दो महान नेताओं को श्रद्धांजलि देने के लिए पटना को विनोद मिश्र नगर और इस सभागार को रामनरेश राम हॉल का नाम दिया है। मंच कामरेड डीपी बख्शी, बीबी पांडे और एनके नटराजन की स्मृति को समर्पित है। ये तीनों हमारी केन्‍द्रीय कमेटी के सदस्‍य थे जिन्‍हें हमने मार्च 2018 में मानसा, पंजाब में आयोजित हमारी 10वीं पार्टी कांग्रेस के बाद से खो दिया।

बिहार के न्यायप्रिय प्रगतिशील लोगों द्वारा इस कांग्रेस के आयोजन को दिए गए हार्दिक समर्थन से हम बहुत प्रोत्साहित महसूस कर रहे हैं। यह गांधी मैदान में कल की ‘लोकतंत्र बचाओ, भारत बचाओ’ रैली की सफलता में भी दिखाई पड़ा। हम बिहार के लोगों के प्रेरणादायी प्रोत्‍साहन के प्रति अपनी गहरी कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

साथी वाम दलों के नेताओं की उपस्थिति से हम बहुत सम्मानित महसूस कर रहे हैं-सीपीआई (एम) से कॉमरेड सलीम, सीपीआई से कॉमरेड पल्लब सेनगुप्ता, आरएसपी से कॉमरेड मनोज भट्टाचार्य, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक से कॉमरेड जी देवराजन, मार्क्सवादी समन्वय समिति से कॉमरेड हलधर महतो , लाल निशान पार्टी, महाराष्ट्र से कॉमरेड भीमराव बंसोडे, आरएमपीआई से कॉमरेड मंगतराम पासला और सत्यशोधक कम्युनिस्ट पार्टी, महाराष्ट्र से कॉमरेड किशोर धामले – महाधिवेशन  के इस उद्घाटन सत्र में उपस्थित हैं। आपकी उपस्थिति हमारे लिए बहुत मायने रखती है और यह निश्चित रूप से एकता की हमारी मौजूदा भावना और परस्‍पर सहयोगआधारित संबंधों को और मजबूत करने में मदद करेगी।

हम अपने पड़ोसी देशों जैसे नेपाल और बांग्लादेश और साथ ही ऑस्ट्रेलिया और वेनेजुएला जैसे देशों से प्रगतिशील दलों और संगठनों द्वारा व्यक्त की गई अंतर्राष्ट्रीयवादी एकजुटता से उत्‍साहित महसूस कर रहे हैं। श्रीलंका, पाकिस्तान और जर्मनी के कामरेड वीजा की समस्या के कारण नहीं आ सके, लेकिन एकजुटता के संदेश दुनिया के कोने-कोने से आए हैं और अभी भी पहुंच रहे हैं। महाधिवेशन को बधाई देने के लिए पटना पहुंच सकने वाले बिरादराना पार्टियों के मेहमानों और एकजुटता का संदेश भेजने वाले बिरादराना संगठनों के हम बहुत आभारी हैं। दुनिया भर में मेहनतकश लोगों पर थोपी गई तरह-तरह की कटौतियों, फासीवाद और निरंकुशतावाद के नए सिरे से उदय, युद्ध, कब्जे और छोटे व कमजोर देशों की संप्रभुता पर हमले और हमारे ग्रह के अस्तित्व को खतरे में डालने वाले जलवायु संकट समेत आज के सड़ते हुए पूंजीवाद द्वारा पैदा किये गये तमाम संकटों से दुनिया को मुक्त करने की लड़ाई को तेज करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता और सहयोग के अपने संबंधों को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। 

कामरेड, जब हम पटना में इस उद्घाटन सत्र का आयोजन कर रहे हैं, लोग त्रिपुरा में राज्य में अगली विधानसभा और सरकार चुनने के लिए मतदान कर रहे हैं। पिछले पांच वर्षों से त्रिपुरा में लगातार लोकतंत्र पर हमले हुए हैं। विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं, समर्थकों और उनके कार्यालयों पर हमले हुए। जन अधिकारों की मांग करने वाले और विरोध की आवाज को बुलंद करने वाले वालों पर लगातार दमन हुआ है। हमें उम्मीद है कि त्रिपुरा के लोग बिना किसी डर के अपना वोट डालने में सक्षम होंगे और भाजपा द्वारा फैलाए गए इस आतंक के शासन को समाप्त करेंगे।

जैसे-जैसे फाशीवादी मोदी सरकार की सभी मोर्चों पर घोर विफलता और विश्वासघात तेजी से उजागर हो रहा है वैसे-वैसे वह अधिक से अधिक झूठ बोलने और डराने-धमकाने का सहारा ले रही है। सरकार ने पहले बीबीसी द्वारा बनायी गई डॉक्‍यूमेंटरी को भारत के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने से रोकने के लिए अपनी आपातकालीन शक्तियों का इस्‍तेमाल किया फिर दिल्ली और मुंबई में बीबीसी कार्यालयों पर आयकर विभाग ने छापे मारे। हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अडानी समूह पर शेयर बाजार में हेरफेर, अकाउन्‍ट में धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया जिससे अदानी के शेयरों की कीमतों में अभूतपूर्व गिरावट आई। इससे अडानी की कुल संपत्ति में भारी गिरावट आई और वह दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में तीसरे स्‍थान से खिसककर बीसवें स्‍थान से भी नीचे पहुंच गया। मोदी सरकार की चुप्पी, जांच कराने से इंकार और भारत की नियामक प्रणाली की विफलता और मोदी और अडानी की सांठगांठ का ही नतीजा है। संसद में मोदी ने अडानी के सवाल पर जवाब देने से परहेज किया और लोगों इस नाम पर चुप रहने को कहा जा रहा है कि सरकार कथित तौर पर गरीबों को सस्ता भोजन, सब्सिडी वाला गैस सिलेंडर, पक्का घर जैसी खैरात दे रही है। यह बीबीसी की डॉक्‍यूमेंटरी को एक औपनिवेशिक साजिश के रूप में पेश किया गया और अडानी के बारे में हुए खुलासे को भारत पर हमले के रूप में पेश किया गया। भाजपा यह सब राष्‍ट्रवाद के नाम पर कर रही है जबकि असलियत में वह राष्‍ट्रवाद का मखौल बना रही है। 

ऑक्सफैम की नयी रिपोर्ट ने एक बार फिर से भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता की ओर ध्यान आकर्षित किया है। इस असमानता को कम करने के लिए अरबपतियों पर संपत्ति और विरासत करों की शुरुआत की जानी चाहिए। लेकिन सरकार ने बिल्‍कुल उल्‍टा कदम उठाते हुए इस साल के बजट में मनरेगा, सामाजिक सुरक्षा और अन्य सार्वजनिक सेवा व कल्याणकारी खर्च के लिए बजटीय प्रावधान को कम कर दिया और अरबपतियों के लिए कर में और भी कटौती की घोषणा कर दी। 

जहां आम लोगों की बिगड़ती जीवन स्थितियों और आर्थिक मोर्चे पर सरकार की भारी विफलता के खिलाफ जनता का गुस्सा बढ़ रहा है। लेकिन मोदी सरकार लोगों का ध्यान भटकाना चाहती है और सामाजिक और आर्थिक संकट का इस्तेमाल अंधराष्ट्रवादी फासीवादी उन्माद फैलाने के लिए करना चाहती है। मुसलमानों को एक समुदाय के रूप में निशाना बनाने, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों और सभी असहमति की आवाजों और न्याय व परिवर्तन के लिए लड़ने वाले सामाजिक समूहों को राष्ट्र-विरोधी बताकर घृणा व सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को तेज करने की कोशिश कर रही है। सब के लिए घर, बिजली, शौचालय और पानी मुहैया कराने के झूठे वादों की जगह अब बुल्‍डोजर से लोगों के घरों को ढहाया जा रहा है। नफरती और छद्म आध्‍यात्मिक गुरुओं द्वारा तथाकथित धार्मिक सभाओं के मंचों से खुले तौर पर जनसंहार के आह्वान किए जा रहे हैं।

संवैधानिक शासन के सभी संस्थानों को नष्‍ट किया जा रहा है। कार्यपालिका खुले तौर पर विधायिका और न्यायपालिका के मामलों में हस्‍तक्षेप कर रही है। राज्यपालों के कार्यालयों, केन्‍द्र द्वारा नियुक्‍त संस्‍थाओं के प्रमुखों और केन्‍द्रीय जांच एजेंसियों को नियंत्रण के उपकरणों में बदल देने के जरिये केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को महिमामंडित नगरपालिकाओं में बदल देने की कोशिश की है। नागरिकता कानूनों, आरक्षण नीतियों में बदलाव और लोगों के विभिन्न वर्गों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों, श्रमिक वर्ग, किसानों, छोटे व्यापारियों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और युवाओं के मौजूदा अधिकारों के क्षरण के साथ संविधान को ही खोखला और भीतर से कमजोर किया जा रहा है। जैसा कि केंद्रीय गृह मंत्री ने घोषणा की है लोकतंत्र और विविधता पर यह हमला 2023 में भारत के जी20 की अध्यक्षता ग्रहण करने से लेकर 1 जनवरी, 2024 को निर्धारित राम मंदिर के उद्घाटन के जश्न तक ढोल-नगाड़ों के साथ जारी रहेगा। 

इस बढ़ते फाशीवादी उन्माद और आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए, हमें भारत भर में जुझारू लोगों की एकजुटता को मजबूत करने की जरूरत है। कोविड-19 महामारी से पहले नागरिकता आंदोलन और कोविड काल की कठोर परिस्थितियों को धता बताते हुए और मोदी सरकार को विनाशकारी कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए मजबूर करने वाले किसान आंदोलन में जिस तरह की एकता और उत्‍साह को हमने देखा था उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। बेदखली, निजीकरण और सांप्रदायिक, जातिगत और पितृसत्तात्मक हिंसा के खिलाफ कई शक्तिशाली संघर्षों का निर्माण, और भोजन, आवास, शिक्षा और रोजगार, सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण के सार्वभौमिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए नये ऊर्जावान आंदोलन खड़े करने की जरूरत है। फासीवाद को हराने, संविधान को बचाने और भारत के लोगों के लिए एक प्रगतिशील और समृद्ध भविष्य बनाने की लोकप्रिय राजनीतिक इच्छाशक्ति की नींव पर ही जनता की देशव्यापी एकजुटता विकसित और सफल हो सकती है।  

हम सभी वामपंथियों को इस लोकप्रिय एकजुटता को कायम करने और एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक संघीय भारत के एजेंडे को आगे बढ़ाने में केंद्रीय भूमिका निभानी होगी। 2023 के हमारे प्रयास 2024 में लोकतंत्र की निर्णायक जीत का मार्ग प्रशस्त करेंगे। हमें फाशीवाद को हराने और लोकतंत्र की लड़ाई जीतने के लिए सभी वामपंथी ताकतों और व्यापक विपक्ष के बीच घनिष्ठ एकता और सहयोग की आवश्यकता है और हमें विश्वास है कि हम इस दिशा में आगे बढ़ सकेंगे।

हमारी 11वीं कांग्रेस फासीवाद के खिलाफ संघर्ष लिए पूरी तरह से समर्पित है। राजनीतिक प्रस्‍ताव और संगठनात्मक रिपोर्ट पर विचार-विमर्श के अलावा, हमारी 11वीं कांग्रेस के एजेंडे में दो अन्य विशिष्ट  प्रस्‍ताव भी शामिल हैं- एक, फासीवाद-विरोधी प्रतिरोध की दिशा, परिप्रेक्ष्य और हमारे कार्यभार और दूसरा, पर्यावरण संरक्षण और जलवायु न्याय प्रश्‍न पर। हम तहेदिल से भारतीय वामपंथी आंदोलन में अपने सभी साथियों और वैश्विक प्रगतिशील खेमे को आपके समर्थन और एकजुटता के लिए धन्यवाद देते हैं और उम्‍मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में यह एकजुटता और सहयोग और भी घनिष्ठ होगा। फासिस्‍ट भारत की राज्य सत्ता से ही नहीं बल्कि दुनियाभर में दक्षिणपंथी ताकतों के उभार से भी अपनी ताकत हासिल कर रहे हैं। वे भारत की सामाजिक संरचना, सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और राजनीतिक इतिहास के सभी प्रतिगामी पहलुओं से अपनी जीवनीशक्ति पा रहे हैं। हमें इस फासीवादी मंसूबे को विफल करने के लिए भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की प्रगतिशील विरासत और साम्राज्यवाद-विरोधी और फासीवाद-विरोध की परंपरा से ताकत हासिल करते हुए अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के लिए बड़े संघर्षों के निर्माण की जरूरत है। हमें विश्वास है कि आपके सहयोग से 11वां महाधिवेशन इस यात्रा को आगे बढ़ायेगा। 

दुनिया की प्रगतिशील ताकतों को मजबूत करो! आइए हम संघर्ष के लिए एकजुट हों और अपनी जीत होने तक लड़ें। इंकलाब जिंदाबाद! क्रांति अमर रहे!

Monday, January 23, 2023

दीपांकर भट्टाचार्य ने की मोदी सरकार की तीखी आलोचना

सोमवार 23 जनवरी 2023 को 09:06 PM पर

देश की संवैधानिक संस्थाओं को खोखला करने का आरोप 


चंडीगढ़: 23 जनवरी 2023: (नक्सलबाड़ी स्क्रीन ब्यूरो)::

भाकपा (माले) लिबरेशन की ओर से यहां दैनिक देश सेवक के परिसर में बने हुए बाबा सोहन सिंह भकना भवन में 'फाशीवाद: विश्व का अनुभव और इसकी भारतीय विशेषताएं' विषय पर एक विशेष सेमिनार का आयोजन किया गया। संगोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव कामरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने संबोधित किया। सेमिनार की अध्यक्षता कामरेड परषोत्तम शर्मा, सुखदर्शन सिंह नत्त, रुलदू सिंह मनसा, भगवंत सिंह समाओ और सेंट्रल ट्रेड यूनियन एक्टू के नेता सतीश कुमार ने की। कार्यक्रम का संचालन पार्टी की चंडीगढ़ इकाई के सचिव कामरेड कंवलजीत ने किया। 

कामरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने अपने भाषण में कहा कि जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, संविधान, लोकतंत्र, राज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र और संघीय ढांचे को लगातार कमजोर किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि 2024 का संसदीय चुनाव देश और देशवासियों के भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। देश में लोकतंत्र को बचाने के लिए भाजपा को हराना जरूरी है। उन्होंने कहा कि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग पार्टियां विपक्ष की भूमिका में हैं, सभी को अपने-अपने राज्यों में बीजेपी के खिलाफ मजबूती से लड़ना चाहिए। विपक्षी दलों की एकजुटता के लिए हर राज्य में एक अलग फॉर्मूला हो सकता है। उन्होंने कहा कि देश स्तर पर भाजपा के खिलाफ व्यापक एकता बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। तमिलनाडु, पंजाब, केरल और बंगाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में राज्यपाल खुले तौर पर केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं। राज्यपालों के ये कृत्य संघीय ढांचे की अवधारणा और राज्यों के अधिकारों का घोर उल्लंघन हैं, इसलिए देश की एकता को भंग करने वाले ऐसे असंवैधानिक कृत्यों को तुरंत रोका जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि मोदी सरकार तानाशाह से ज्यादा फाशीवादी शासन की तरह काम कर रही है, जिससे वह सभी संवैधानिक संस्थाओं के अस्तित्व के लिए खतरा बन गई है। आम जनता रोजगार, आवास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों के लिए वोट देती है, लेकिन संघ-भाजपा इसके बजाय अपने कॉर्पोरेट-उन्मुख सांप्रदायिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए सत्ता का दुरुपयोग कर रहे हैं। आज साम्प्रदायिक ज़हर उगलने वाले, हत्यारे, दंगाई और खरबों के सरकारी धन का गबन करने वाले भ्रष्टाचारी खुले घूम रहे हैं, लेकिन दलितों, मजदूरों, युवाओं, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाले और संघर्ष करने वाले सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को झूठ का शिकार बनाया जा रहा है। बहुत से मामलों में जनता की आवाज़ उठाने वालों को झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है और झूठी पुलिस मुठभेड़ों में मौत के घात उतरा जा रहा है। ऐसे जन हितैषी लोगों को उनकी सज़ाएं पूरी होने के बाद भी जेलों से रिहा नहीं किया जा रहा। 

मीडिया से बात करते हुए राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो यात्रा' पर एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अगर राहुल के दौरे से कांग्रेस में कुछ गति आती है तो यह अच्छी बात होगी। उन्होंने कहा कि कम से कम फाशीवाद का मुकाबला करने के लिए आम सहमति के आधार पर देश में एक व्यापक मोर्चा विकसित करने की मुख्य जिम्मेदारी वाम दलों की है। उन्होंने कहा कि पटना में 15 से 20 फरवरी तक होने वाले भाकपा माले के 11वें आम सम्मेलन में मोदी सरकार के खिलाफ व्यापक सामाजिक-राजनीतिक गोलबंदी पर गंभीरता से चर्चा की जाएगी।


मानसा से इस संगोष्ठी में शामिल होने के लिए पहुंचे पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य कामरेड सुखदर्शन नत्त भी अपने परिवार के साथ मौजूद थे। आयोजन के बाद मानसा लौटते हुए चंडीगढ़ के वाईपीएस चौक पर चल रहे राष्ट्रीय इंसाफ मोर्चा में पार्टी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। वह लंबे समय से इस पार्टी के साथ रहे हैं और उन्होंने विश्व कम्युनिस्ट आंदोलनों के साथ-साथ भारत में कम्युनिस्ट दलों से जुड़े आंदोलनों के बहुत से उतार-चढ़ाव के दौर भी देखे हैं। वह पार्टी के बहुत ही प्रतिबद्धता से भरे अनुशासित और वरिष्ठ नेता हैं। मानसा से लेकर अमृतसर तक, पंजाब से लेकर यूपी, बिहार और बंगाल तक वह पार्टी के काम से कभी नहीं थकते। उन्होंने पार्टी को पंजाब में मज़बूती से पैठ बनाने और विभिन्न क्षेत्रों के कई आगे की सोच वाले व्यक्तियों, पत्रकारों और लेखकों को पार्टी के करीब लाने में भी सक्रिय भूमिका निभाई है। बहुत ही सादगी और नैतिकता का जीवन जीने वाले नत्त परिवार में आलोचकों और विरोधियों की सबसे तीखी बातों को सुनकर भी अपना संतुलन न खोने की जादुई क्षमता मौजूद है। शायद सुखदर्शन नत्त उन कुछ दुर्लभ परिवारों में से एक हैं जिन्होंने अपने बच्चों को भी इस फलसफे और विचारधारा से पूरी तरह जोड़े रखा है। उन्होंने अपने बच्चों को भी इस संघर्ष की कठिनाइयां दी हैं और वह भी मुस्कराते हुए, उन्हें इन सभी मुश्किलों की जानकारी देते हुए। बिना कुछ भी छुपाए शुद्ध संघर्ष की एक विरासत देते हुए।  

स्वयं अधिक से अधिक अध्ययन करना और दूसरों को भी इसके रूबरू कराना सुखदर्शन नत्त के स्वभाव में शामिल है। युवावस्था वाली मौज-मस्ती के दौर में भी वह इस विचारधारा से गंभीरता से जुड़े रहे। वह अभी भी लोगों के कल्याण के बारे में सोचते हैं। सभी मतभेदों से ऊपर उठकर इस आंदोलन को मजबूत करना भी उनकी प्राथमिक चिंताओं में से एक है। उनकी पत्नी जसबीर कौर नत्त भी उनका पूरा समर्थन करती हैं और पार्टी में भी पूरी तरह सक्रिय हैं।

सेमिनार के इस अवसर पर सर्वाधिक आलोचनात्मक और विवादास्पद मामलों पर अपनी टिप्पणी देने वाले प्रख्यात विचारक डॉ. प्यारे लाल गर्ग भी उपस्थित थे। स्वयं पार्टी के पदाधिकारी व अन्य प्रबंधक अभी तक बाबा सोहन सिंह भकना हॉल के बाहर भी नहीं पहुंचे थे, लेकिन डॉ. प्यारे लाल गर्ग पूरे अनुशासन के साथ निश्चित समय पर पहुंचे थे हुए थे। भकना भवन के बाहरी प्रांगण में डॉ. गर्ग बहुत ही विनम्रता और सादगी से प्रांगण के फुटपाथ जैसी सीढ़ी पर बैठे नज़र ऐ। उन्हें देख कर आशंका हुई की इतना बड़ा व्यक्ति इस तरह ज़मीन पर कैसे बैठ सकता है। आशंका दूर करने के लिए उन्हें फोन लगाया तो वह डॉ. प्यारे लाल गर्ग ही निकले। 

कार्यक्रम शुरू होने से पहले, उनके शब्दों ने जीवन के गहरे रहस्यों के बारे में बहुत कुछ सिखाया और समझाया। घर-परिवार से लेकर समाज तक उनकी पारदर्शी सोच और बेबाकी देखकर दिल चाहने लगता है कि ज़िन्दगी में बस उनके जैसा बना जाए। उन्होंने बातों बातों में बताया कि पीजीआई में उनक रूटीन कैसा रहता था। इसके साथ ही घर परिवार के मामले में वह कितना सीधे और स्पष्ट थे।उन्होंने अपने बच्चों को कैसे जीवन की असली शिक्षा दी इस सब üपर कभी अलग से पोस्ट लिखनी है। सही बात यही है कि ऐसी बातें किताबों में नहीं मिलतीं। इस तरह की अनमोल बातों का पता डॉ. गर्ग जैसे दरवेशों के साथ बैठने से ही लगता है। 

इस बीच जब सेमिनार शुरू हुआ तो डॉ. प्यारे लाल गर्ग ने प्रत्येक वक्ता को बड़े ध्यान से सुना। यहां तक कि आदि से अंत तक सबसे पीछे बैठे हुए उन्होंने हर वक्ता के दिल की आवाज भी सुनी थी जो उनकी जुबां तक नहीं आई थी।शैड उन्हें सभी के दिल का एक्सरे अपनी एक निगाह से ही करना अत है। जब मंच के लोगों ने उनसे अनुरोध किया तो उन्होंने मंच पर पहुंचकरभी अपने विचार रखे। उन्होंने संगोष्ठी के मंच से भी बड़ी विनम्रता से अपने विचार रखे। इस छोटे से भाषण की शुरुआत भी बेहद सादगी भरी थी और अंत में माइक को वापिस रखने  की रस्म भी। एक बार फिर बाहर का दृश्य यद्बा आ गया जब थोड़ी ही देर पहले पार्क में चबूतरे पर बैठे रुल्दा सिंह मनसा की तेज़ आवाज फिर से कानों में गूंजने लगी जो उन्होंने डॉ. गर्ग को देखकर कही थी- कि आपको टेलीविज़न पर तो हम रोज़ ही देखते हैं लेकिन आज आमने सामने भी खुले दर्शन कर लिए। डॉ.गर्ग का अद्वितीय व्यक्तित्व अनजान और नए लोगों को भी पलों क्षणों में ही अपना बना लेता है। 

अब चर्चा वहां पहुंचे कुछ और खास मेहमानों की भी। पत्रकार आमतौर पर केवल अपने निर्धारित समय पर कार्यालय पहुंचने, समाचार बनाने, संपादन करने, लेख लिखने और नियुक्तियों की पुष्टि करने, घर लौटने तक ही सीमित रहते हैं, उनके पास किसी अन्य काम के लिए समय बचता भी नहीं है, न ही संपादकीय डेस्क से उठने के बाद ऊर्जा बाकी।  तन मन सब  खाली जैसा हो जाता है। बस थकावट  जो कहती है जल्दी से जा कर सो जाओ। ऐसा लगता है कि अंदर की सभी शक्तियों का किसी ने हरण लिया है।  समाज के चौथे स्तंभ मीडिया में काम करने वाले अधिकांश लोग समाचार पत्रों के कर्तव्यों को पूरा करते करते बहुत जल्द इस दुनिया से चले जाते हैं। जब तक ज़िंदगी रहती है तब तक वे आम जनता से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने में व्यस्त रहते हैं। ऐसे लोग अपने संस्थान से रिटायर हो कर भी कभी रिटायर नहीं होते। अनुभवी पत्रकार हमीर सिंह भी इसी तरह की सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं । वह अक्सर नाज़ुक मुद्दों पर अपनी  बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं । इस अवसर पर हमीर सिंह के साथी सहयोगी और करीबी मित्र भी कभी-कभी उनकी आलोचना करते हैं लेकिन इसने हमीर सिंह की बात, अंदाज़ या विचार ओके कभी प्रभावित नहीं किया। वह अपना  बदलते और  नहीं। उन्हें देख कर याद आ रहा था एक दोहा:

कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर! ना काहू से दोस्‍ती, न काहू से बैर!

तो ऐसी ही शख्सियत वाले पत्रकार हमीर सिंह भी इस संगोष्ठी में पहुंचे हुए थे। वह भी डॉ. गर्ग के साथ सबसे पीछे वाली पंक्ति की कुर्सियों पर बैठे थे। उनके साथ जानेमाने स्तंभकार//कालम नवीस और टीवी पत्रकारिता जगत के मौजूदा सितारे एसपी सिंह भी थे लेकिन आयोजकों के आग्रह करने पर भी एस पी सिंह मंच पर नहीं आए, हालांकि, उनकी उपस्थिति इस संगोष्ठी के कवरेज को महत्व दे रही थी।

अंत में उस शख्स का जिक्र किये बिना कहानी अधूरी ही रहेगी जो इस सारे संगठन की जिम्मेदारी बड़े ही हर्षोल्लास से निभाते हुए सबसे मुस्कुरा कर मिल रहा था। भाकपा माले लिबरेशन की केंद्रीय कमेटी के सदस्य व चंडीगढ़ इकाई के प्रभारी कंवलजीत सिंह ने इस पूरे कार्यक्रम को बेहद सहज ढंग से सफल बनाया। न थकान, न कोई खीझ. न ही माथे पर बल जैसी कोई बात।  
कंवलजीत सिंह के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर ही इस आयोजन को सफल बनाने के लिए पंजाब यूनिवर्सिटी के कई युवक-युवतियां और युवा लड़के-लड़कियां सक्रियता दिखते हुए सेमिनार में आए हुए थे। कॉमरेड दीपांकर भट्टाचार्य के चंडीगढ़ में आने की खबर दो-तीन दिन पहले ही सामने आई थी। देश सेवक अखबार के परिसर में बाबा सोहन सिंह भकना हॉल में इस मकसद का विशेष आयोजन था। यूनिवर्सिटी में सक्रिय कंवलजीत सिंह के युबवा साथियों की टीम ने ही इसे सोशल मीडिया के ज़रिए जन जन तक पहुंचा दिया था। अपने मेहबूब नेता दीपांकर को देखने के लिए लोग दूर दराज से आए हुए थे। 
भाकपा(माले) लिबरेशन के महासचिव कॉमरेड दीपंकर भट्टाचार्य चंडीगढ़ और पंजाब हरियाणा के इन नौजवानों और छात्रों में कितने ज़्यादा लोकप्रिय हैं, ये इन नौजवानों को देखकर ही पता चल जाता है. ये सभी अपने प्रिय नेता की एक झलक पाने और उनके विचार सुनने पहुंचे थे। आकर्षक और जादू  भरे व्यक्तित्व के मालिक कंवलजीत जल्द ही पार्टी का जनाधार मजबूत करने में अहम भूमिका निभाएंगे।

कम्युनिस्ट पार्टियों की विभाजित शक्ति और नक्सलबाड़ी आन्दोलन से जुड़े लोगों की गुटबाजी इस आन्दोलन की मजबूती में बड़ी बाधाएँ हैं। ऐसी बाधाओं को दूर कर इस आंदोलन को मजबूत करने के लिए सभी ईमानदार व्यक्ति और संगठन भी सक्रिय हैं।


इस गोष्ठी में भी वामपंथी दलों की एकता और मजबूती पर काफी जोर दिया गया था। अब देखना होगा कि अगले महीने पटना साहिब (बिहार) में होने वाली पार्टी की ग्यारहवीं कांग्रेस में पार्टी नेतृत्व क्या क्या नए फैसले लेता है? यह बैठक 15 से 20 फरवरी तक पटना साहिब के गांधी मैदान में होनी है. उल्लेखनीय है कि पार्टी का दसवां कांग्रेस मनसा में आयोजित किया गया था।

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Sunday, May 29, 2022

नक्सलबाड़ी आंदोलन के प्रभाव और प्रासंगिकता पर दावे

दीपंकर बताते हैं कि  हमारा विरोध भी हमारी क्षमता को ही दर्शाता है 

महान नक्सलबाड़ी उभार की 55वीं वर्षगांठ नामक उनका आलेख 25 मई 2022 को उनकी पार्टी वेबसाईट पर प्रकाशित हुआ है। यह आलेख बहुत ही गहनता से काफी कुछ बताता है। पार्टी के उत्थान, दमन और पुनरुत्थान पर बहुत ही सरलता और सादगी से बात करता है। ज़ेह आलेख हमें उपलब्ध करवाया पार्टी  की पंजाब इकाई के राज्य समिति सदस्य कामरेड हरभगवान भीखी ने जो काफी समय से पंजाब और अन्य राज्यों में भी सक्रिय हैं।  पर आपके विचारों की इंतज़ार हमें रहेगी। --सम्पादक 


महान नक्सलबाड़ी उभार की 55वीं वर्षगांठ
 

आधुनिक भारतीय इतिहास बहुत सारे लोकप्रिय जनउभारों का साक्षी रहा है। भारतीय स्वतंत्रता के लंबे संघर्ष को उत्पीड़ित भारतीयों के विभिन्न तबकों के उभारों ने ऊर्जा प्रदान की। वे उत्पीड़ित जो सिर्फ बाहरी औपनिवेशिक सत्ता से ही उत्पीड़ित नहीं थे बल्कि उस सामाजिक ढांचे से भी उत्पीड़ित थे जो भारतीयों पर भीतर से हावी था, जैसे जाति व्यवस्था, पितृसत्ता, सामंती शक्ति, स्थानीय रजवाड़े और राजशाही।  

यह चाहे पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857-59) की बात हो या फिर गांधी के नेतृत्व में सविनय अवज्ञा और भारत छोड़ो आंदोलन जैसी व्यापक जनजागरूकता हो या फिर 1940 के दशक में कम्युनिस्टों के नेतृत्व वाले तेभागा और तेलंगाना जैसे किसान उभार हों, उन आदिवासी लोगों और गरीब किसानों, जिनका खून जमींदार, साहूकार और औपनिवेशिक शासक चूसते थे, के विद्रोह जनप्रतिरोध के मुख्य घटक थे।

वास्तविक समानता, स्वतंत्रता और न्याय हासिल करने के सपने को मुकम्मल करने की जद्दोजहद के साथ ये जन उभार 1947 के बाद भी जारी रहे। भूमिहीन किसानों और उत्पीड़ित चाय बागान मजदूरों का 25 मई 1967 का नक्सलबाड़ी उभार, ऐसा ही ऐतिहासिक क्षण है। इसने देश भर में उत्पीड़ितों और युवाओं को तरंगित कर दिया।  

राज्य ने इसे कुचलने के लिए प्राणपण से युद्ध छेड़ दिया। आज के दौर में औपनिवेशिक कालीन उत्पीड़न वाले काले क़ानूनों, हिरासत में हिंसा और न्यायेतर आतंक का अंधाधुंध इस्तेमाल हम देखते हैं, उसको पहला बड़ा बल राज्य दमन की प्रयोगशाला में 1970 के दशक में मिला. परंतु नक्सलबाड़ी की विरासत अपने उभार के 55 वर्षों में हर बीतते दिन के साथ बढ़ती रही, गहराती गयी और इसका विस्तार होता रहा है।  

इस उभार ने 22 अप्रैल 1969 को भाकपा(माले) के गठन का मार्ग प्रशस्त किया। अलबत्ता इस नवगठित पार्टी को न्यायेतर हिंसा और नरसंहारों समेत भारतीय राज्य के भारी दमन और क्रोध का सामना करना पड़ा जिसमें सुहार्तो के शासनकाल में इंडोनेशिया में कम्युनिस्टों के कत्लेआम की छाप दिखती थी। लेकिन पार्टी इस तूफान में भी कामयाबी के साथ डटी रही। इसने भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन को व्यापक तौर पर ऊर्जा प्रदान की और उसका क्रांतिकारीकरण किया। मोदी काल में असहमति के व्यापक स्वरों को निशाना बनाने के लिए गढ़े गए शब्द “अर्बन नक्सल” का अविवेकी प्रयोग नक्सलबाड़ी की शक्ति और प्रतिरोध क्षमता को दर्शाता है। 

नक्सलबाड़ी के लोकप्रिय मिथक के विपरीत यह कुछ अलग-थलग क्रांतिकारियों की चीनी क्रांति को भारतीय जमीन पर रोपने की अराजकतापूर्ण और दुस्साहसिक कार्यवाही नहीं थी। अगर ऐसा होता तो वह एक अल्पजीवी बुलबुला सिद्ध होता। वह एक जन आलोड़न था, जिसकी गहरी जड़ें, अन्याय और दमन के खिलाफ होने वाले विद्रोहों की भारतीय परंपरा में थी. उसमें भारत के स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी और ऊर्जा थी, वह क्रांतिकारी संभावना और परंपरा को महसूस करने की एक साहसपूर्ण कार्यवाही थी।  

कम्युनिस्ट आंदोलन के इतिहास के भीतर यह तेभागा और तेलंगाना की भावना को पुनर्जीवित करने का सुदृढ़ प्रयास था। आजादी के बाद जनता के मोहभंग और राजनीतिक संक्रमण (1967 के चुनावों में कॉंग्रेस नौ राज्यों में चुनाव हार गयी थी) को एक सुदृढ़ क्रांतिकारी धार देने की कोशिश थी।  

कॉमरेड चारु मजूमदार तेभागा आंदोलन के एक समर्पित संगठक थे और अपने कॉमरेडों की टीम और तराई डूआर्स और दार्जिलिंग व उत्तरी बंगाल के संघर्षशील लोगों के साथ तेभागा के समय के पूरे अनुभव और विकसित अंतर्दृष्टि का उपयोग उन्होंने नक्सलबाड़ी के उभार को विकसित करने में लगाया। भाकपा(माले) की स्थापना और तेज़ गति से फैलाव ने क्रांतिकारी कम्युनिस्ट आंदोलन की गहरी जड़ों, उसके प्रति जनता का आकर्षण और शक्ति को प्रदर्शित किया और जिस तरह से 1970 के घोषित आपातकाल से लेकर फासीवादी हमले के वर्तमान शासन तक यह आंदोलन अपनी जमीन को मजबूती से पकड़े रखने और अपने क्षितिज को विस्तारित करने में कामयाब रहा, वह इसकी अंतर्निहित शक्ति और जीवंतता को प्रदर्शित करता है। 

नक्सलबाड़ी की 55वीं वर्षगांठ पर आंदोलन के शहीदों, इस महान उद्देश्य के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले नेताओं व कार्यकर्ताओं तथा उन सभी कवियों, गायकों और संघर्षों के इलाकों की जनता के प्रति—जिन्होंने इसके संदेश को पूरे भारत में फैलाया तथा जबर्दस्त दमन झेलते हुए साहस, ऊर्जा और प्यार के सा​थ आंदोलन को कायम रखा—हम अपना सम्मान प्रकट करते हैं। नक्सलबाड़ी, उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ जनप्रतिरोध की अपराजेय भावना का प्रतीक बन गया है। यह सत्ता के मद में चूर शासकों की हेकड़ी और आक्रामकता के विरुद्ध संघर्षशील जनगण की विजयी मुस्कान है. नक्सलबाड़ी को लाल सलाम!  

-दीपंकर भट्टाचार्य, महासचिव भाकपा (माले)

Wednesday, February 23, 2022

रूस की तरफ से सैन्य आक्रामकता का प्रदर्शन चिन्ता का विषय

भाकपा (माले) ने रूस को आड़े हाथों लिया 


नई दिल्ली
: 22 फरवरी 2022: (नक्सलबाड़ी ब्यूरो)::

यूक्रेन पर रूस के हमले को लेकर लेफ्ट पूरी तरह से एकमत नहीं हो पा रहा। इसी बीच भाकपा (माले) ने रूस के साथ साथ अमेरिका और नाटो को भी अपने निशाने पर रखा है। भाकपा(माले) केन्द्रीय कमेटी ने स्पष्ट कहा है कि हम अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा यूक्रेन को लेकर फैलाये जा रहे युद्धोन्माद की कड़ी भर्त्सना करते हैं. नाटो देशों को पूर्वी यूरोप में पैर पसारने के प्रयासों पर रोक लगानी चाहिए. अमेरिका व ब्रिटेन भले ही नाटो को एक सुरक्षात्मक गठबंधन बताते रहें, सच तो यह है कि अफगानिस्तान, यूगोस्लाविया और लीबिया में पिछले वर्षों में, या उसके पहले ईराक पर युद्ध थोपने में, उनकी कारगुजारियां निस्संदेह साम्राज्यवादी हितों को साधने वाली रही हैं। 

इसके साथ पार्टी ने यह भी कहा है कि यूक्रेन की सीमाओं पर रूस द्वारा किया जा रहा सैन्य आक्रामकता का प्रदर्शन भारी चिन्ता का विषय है। पार्टी ने कहा है कि वर्तमान संकट का हल यूक्रेनी जनता के आत्मनिर्णय के अधिकार का सम्मान करते हुए शांतिपूर्ण तरीके से परस्पर बातचीत के द्वारा किया जाना चाहिए। 

इस टकराव के समाधान की दिशा में रूस को यूक्रेन की सीमाओं से अपनी सेनायें तत्काल वापस बुला लेनी चाहिए और रूस एवं अमेरिका व नाटो को यूक्रेन में कोई भी हस्तक्षेप तत्काल बंद कर तनाव को कम करने लिये मिन्स्क—2 समझौते के आधार पर कूटनीतिक समाधान निकालना चाहिए.

हम अमेरिका और ब्रिटेन द्वारा यूक्रेन को लेकर फैलाये जा रहे युद्धोन्माद की कड़ी भर्त्सना करते हैं. नाटो देशों को पूर्वी यूरोप में पैर पसारने के प्रयासों पर रोक लगानी चाहिए. अमेरिका व ब्रिटेन भले ही नाटो को एक सुरक्षात्मक गठबंधन बताते रहें, सच तो यह है कि अफगानिस्तान, यूगोस्लाविया और लीबिया में पिछले वर्षों में, या उसके पहले ईराक पर युद्ध थोपने में, उनकी कारगुजारियां निस्संदेह साम्राज्यवादी हितों को साधने वाली रही हैं.

हम रूस व यूरोप में चल रहे युद्ध विरोधी आन्दोलनों के प्रति अपनी एकजुटता जाहिर करते हुए वहां चल रहे नये हथियार नियंत्रण समझौतों और उस महाद्वीप में आणविक निशस्त्रीकरण की सभी कोशिशों का समर्थन करते हैं।